तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे भाषा के विशेषज्ञ पढ़कर कहें कि ये कलम का छोटा सिपाही ऐसा है तो भीष्म साहनी, प्रेमचंद, महादेवी वर्मा, जयशंकर प्रसाद, सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला', हरिवंश राय बच्चन, फणीश्वर नाथ रेणु आदि कैसे रहे होंगे... गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.

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BAHUT YAAD AATI HAI MAA....

बहुत याद आती है माँ……




पथरीलेँ रास्तोँ पर जीवन के,
घाव जलते हैँ जब तन मन के,
RAJESH MISHRA'S FATHER AND MOTHER
LATE SHIVNATH AND LT. PAWAN MISHRA
बहुत याद आती है माँ।।

याद आती है मेरे लिये आँखोँ मेँ कटती उसकी रातेँ,
याद आती है हर कदम पर मुझे समझाती उसकी बातेँ,
मेरी गलतियोँ पर मुझको डाँटती फिर दुलारती,
मेरी बिखरी फैली चीजोँ को ध्यान से संभालती,
अपने हाथोँ से बनी चपाती चाव से खिलाना,
मेरी बिमारी मेँ बहलाकर कड़वा काड़ा पिलाना,
चाहे दिन रात कितनी ही मेहनत वो करती,
फिर भी मेरे काम को कभी न वो थकती,

उसके आँचल मेँ पले बढ़े दिन कितने अच्छे थे वो बचपन के,
बहुत याद आती है माँ।।
RAJESH MISHRA, KOLKATA, WEST BENGAL

मुझको हर दिन बढ़ते वो देखना चाहती थी,
आसमान पर मुझको चढ़ते वो देखना चाहती थी,
मुझसे ज्यादा मेरे लिये मेहनत वो दिनभर करती थी,
मेरी इच्छाओँ पर अपनी हर इच्छा न्यौच्छावर करती थी,
मेरे बढ़ते कदमोँ को दिशा वो दिखाती थी,
मेरी सफलता मेँ अपना जीवन सफल होता पाती थी,
गिरता जब मैँ उठकर चलना वो जीवन है वो बताती थी,
उसकी लगन ही थी जो मुझे सपने देखना सिखाती थी,

मेरे सारी सफलतायेँ परिणाम है बस उसी की लगन के,
बहुत याद आती है माँ।।

चलते चलते मैँ ये कहाँ आज आ गया हूँ,
देखकर दुनिया के रंग बहुत घबरा गया हुँ,
आज कोई नहीँ है मेरे साथ,
सर पर नहीँ है किसी का हाथ,
भीड़ भरी दुनिया मेँ अकेला हो गया हूँ,
बहुत कुछ पाकर मैँ खुद ही कहीँ खो गया हूँ,
ये दिन ये रात अब मुझे बहुत सताते हैँ,
मेरे नयन अब बस यूँ ही आँसू बहाते हैँ,

आ मेरी माँ और फिर आसूँ पोँछ मेरे नयन के,
तु….
बहुत याद आती है माँ ।।

बहुत याद आती है माँ ।
संकलन : राजेश मिश्रा, लेखक * तरुण राज गोस्वामी 

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