सरकार व लोकपाल समिति में मतभेद, बैठक कल
सरकार और गाधीवादी अन्ना हजारे पक्ष के बीच बातचीत लगभग टूटने की कगार पर पहुंचने के बाद लोकपाल मसौदा समिति की सोमवार और मंगलवार को यहा फिर बैठक होगी ताकि दोनों पक्षों के बीच गंभीर मतभेदों को दूर करने की आखिरी कोशिश की जा सके।
समिति की 20 और 21 जून को बैठक करने का फैसला इसलिए किया गया ताकि लोकपाल के बुनियादी मुद्दों पर 'अत्यधिक मतभेद' कम करने की एक और कोशिश की जा सके। हजारे पक्ष की ओर से कर्नाटक के लोकायुक्त संतोष हेगड़े अपनी 'पूर्व निर्धारित प्रतिबद्धताओं' के चलते इन बैठकों में शामिल नहीं होंगे।
हालाकि, बैठकों को अब महज औपचारिकता माना जा रहा है क्योंकि दोनों पक्ष मसौदे का अपना-अपना संस्करण तैयार करने और लोकपाल के मुद्दे पर राजनीतिक दलों से संवाद साधने का मन बना चुके हैं।
लोकपाल मसौदा समिति की पिछले बुधवार हुई बैठक में मतभेद गहराने के बाद सरकार ने फैसला किया कि गतिरोध कायम रहने की स्थिति में 30 जून तक मसौदे का एक दस्तावेज तैयार कर लिया जाएगा, जिसमें दोनों पक्षों के सहमति और असहमति वाले बिंदुओं का जिक्र होगा।
मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल ने शनिवार को एक बार फिर स्पष्ट कर दिया कि सरकार प्रधानमंत्री पद को लोकपाल के दायरे में लाने के खिलाफ है, लेकिन उनके पद छोड़ने के बाद उन्हें अभियोजन के दायरे में लाया जा सकता है।
इस बीच, शनिवार को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और काग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाधी की पार्टी के अन्य शीर्ष नेताओं के साथ अहम बैठक हुई। इसमें लोकपाल के मुद्दे पर सभी राजनीतिक दलों के विचार जानने के लिए जल्द ही सर्वदलीय बैठक बुलाने के बारे में आम राय बनती दिखी। सिब्बल ने भी कहा कि सरकार मसौदा विधेयक कैबिनेट को भेजने से पहले राजनीतिक दलों से चर्चा करेगी।
उधर, हजारे पक्ष भी राजनीतिक दलों से संवाद साधने की तैयारी में है। इस बारे में मसौदा समिति के सदस्य और आरटीआई कार्यकर्ता अरविंद केजरीवाल ने बताया कि हम 20 और 21 जून को होने वाली बैठक के बाद राजनीतिक दलों से संवाद करेंगे ताकि उन्हें अपनी दलीलों के बारे में अवगत करा सकें।
केजरीवाल ने कहा, सरकार ने समिति का गठन होने के बाद से अब तक राजनीतिक दलों को इस कवायद से दूर रखा। हमने अप्रैल में हमारा आदोलन शुरू करने से पहले भी राजनीतिक दलों से बातचीत की थी। हम फिर उनसे संवाद करेंगे।
दोनों पक्षों के बीच कई मुद्दों पर सहमति होने के समिति के संयोजक विधि मंत्री वीरप्पा मोइली के दावों के बारे में पूछे जाने पर केजरीवाल ने कहा कि समिति की अब तक की बैठकों में 15 फीसदी मुद्दों पर भी चर्चा नहीं हो पाई है।
उन्होंने कहा कि सरकार प्रधानमंत्री, उच्च न्यायपालिका और संसद के अंदर सासदों के आचरण को लोकपाल की जाच के दायरे में लाने के खिलाफ है। वह लोकपाल के चयन के लिए छानबीन समिति के ढ़ाचे और अदालतों के गठन के मुद्दे पर भी राजी नहीं है।
शनिवार शाम हजारे पक्ष ने एक बयान जारी कर संयुक्त सचिव और उससे ऊपर के ओहदे वाले नौकरशाहों को ही प्रस्तावित लोकपाल की जाच के दायरे में लाने की सरकार की दलीलों पर सवाल खड़े किए। हजारे पक्ष ने कहा कि उसके द्वारा प्रस्तावित लोकपाल के ढाचे के तहत संवैधानिक संशोधनों की जरूरत नहीं होगी।
प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे में लाने के मुद्दे पर गृह मंत्री पी. चिदंबरम का कहना है कि प्रधानमंत्री को स्पष्ट रूप से निर्धारित अपवादों या फिर उनके द्वारा पद छोड़ देने के बाद लोकपाल के दायरे में लाया जा सकता है।
इस बीच, दोनों पक्षों की ओर से बयानबाजी का दौर जारी है।
सिब्बल ने शनिवार को हजारे पर निशाना साधते हुए कहा कि वह गुजरात में अनशन क्यों नहीं करते, जहा लोकायुक्त नहीं है। कर्नाटक में भी उन्हें अनशन करना चाहिए जहा के मुख्यमंत्री पर भ्रष्टाचार के आरोप हैं।
उधर, हजारे ने भी एक समाचार चैनल के कार्यक्रम में कहा कि शुरू में सोनिया गाधी और प्रधानमंत्री से बहुत उम्मीदें थीं। वे दोनों आशा की किरण थे, पर बीच में क्या गड़बड़ हुआ, पता नहीं। सरकार पलट गई।
सिंह के बारे में उन्होंने कहा कि मैं इस बात से सहमत हूं कि वह ईमानदार प्रधानमंत्री हैं, लेकिन वह क्या कर सकते हैं? वह रिमोट कंट्रोल से नियंत्रित हैं। यह ऐसा है जैसे कोई उनसे कहता हो कि चुप बैठो, नहीं तो कान कटेगा।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें