ये जो अधिनियम आ रही है उससे आज नहीं कुछ दिन बाद सही हिंदुस्तान को फिर से टुकड़ों में बंटने से कोई नहीं रोक पायेगा . ‘सांप्रदायिक एवं लक्षित हिंसा निवारण अधिनियम-2011’ की आग में जलेगा देश। कांग्रेस काटेगी वोटों की फसल। बहुसंख्यकों पर होगा अत्याचार।
कां ग्रेस की नीतियां अब देशवासियों की समझ से परे जाने लगी हैं। संविधान की शपथ लेकर उसकी रक्षा और उसका पालन कराने की बात कहने वाली यूपीए सरकार संविधान विरुद्ध ही कार्य कर रही है। उसने देश को एकसूत्र में फिरोने की जगह दो फाड़ करने की तैयारी की है। वोट बैंक की घृणित राजनीति के फेर में कांग्रेस और उसके नेताओं का आचरण संदिग्ध हो गया है। हाल के घटनाक्रमों को देखकर तो ऐसा ही लगता है कि कांग्रेस फिर से देश बांट कर रहेगी या फिर देश को सांप्रदायिक आग में जलने के लिए धकेलकर ही दम लेगी। सोनिया गांधी की अध्यक्षता वाली राष्ट्रीय सलाहकार परिषद ने ‘सांप्रदायिक एवं लक्षित हिंसा निवारण विधेयक-2011’ तैयार किया है। लम्बे समय से सब ओर से इस विधेयक का विरोध हो रहा है। लगभग सभी विद्वान इसे ‘देश तोड़क विधेयक’ बता रहे हैं। इसे संविधान की मूल भावना के खिलाफ माना जा रहा है। इसे कानूनी जामा पहनाना देश के बहुसंख्यकों को दोयम दर्जे का साबित करने का प्रयास है। इसके बावजूद कांग्रेस की सलाहकार परिषद ने बीते बुधवार को इसे संसद में पारित कराने के लिए सरकार के पास भेज दिया।
‘समानांतर सरकार’ नहीं चलने देंगे। ‘सिविस सोसायटी’ को क्या अधिकार है विधेयक तैयार करने का। यह काम तो संसद का है। इस तरह के बहानों से लोकपाल बिल का विरोध करने वाले सभी कांग्रेसी इस विधेयक को पारित कराने के लिए जी जान से जुट जाएंगे। वह इसलिए कि इस विधेयक को उनकी तथाकथित महान नेता सोनिया गांधी के नेतृत्व में तैयार कराया गया है, किसी अन्ना या रामदेव के नेतृत्व में नहीं। इसलिए भी वे पूरी ताकत झोंक देंगे ताकि इस विधेयक के नाम से वे अल्पसंख्यकों के ‘वोटों की फसल’ काट सकें। अन्ना हजारे और बाबा रामदेव के सुझाव मानने से तो उनकी ‘लूट’ बंद हो जाती। जबकि यह विधेयक उन्हें भारत को और लूटने में मददगार साबित होगा। कांग्रेस की यह ‘दादागिरी’ कि हम पांच साल के लिए चुनकर आए हैं हम जो चाहे करेंगे। इससे देश का मतदाता स्वयं को अपमानित महसूस कर रहा है। अन्ना हजारे और बाबा रामदेव के आंदोलन में बड़ी भारी संख्या में शामिल होकर उसने कांग्रेस को बताने का प्रयास किया कि उसकी नीतियां देश के खिलाफ हो रही हैं। वक्त है कांग्रेस पटरी पर आ जाए, लेकिन सत्ता के मद में चूर कांग्रेस आमजन की आवाज कहां सुनती है। आप खुद तय कर सकते हैं कि यह विधेयक देश में सांस्कृतिक एकता के लिए कितना घातक है। फिर आप तय कीजिए क्या ऐसे किसी कानून की देश को जरूरत है? क्या ओछी मानसिकता वाली कांग्रेस की देश को अब जरूरत है? क्या यूपीए सरकार की नीतियां और उसका आचरण देखकर नहीं लगता कि शासन व्यवस्था में ‘देशबंधु’ कम ‘देशशत्रु’ अधिक बैठे हैं? क्या कांग्रेस नीत यूपीए सरकार को पांच साल तक सत्ता में बने रहने का अधिकार है? क्या इस तरह देश में कभी चैन-अमन कायम हो सकेगा? क्या इससे ‘बहुसंख्यक’ अपने को कुंठित महसूस नहीं करेगा?
‘सांप्रदायिक एवं लक्षित हिंसा निवारण विधेयक-2011’ कहता है…
1- ‘बहुसंख्यक’ हत्यारे, हिंसक और दंगाई प्रवृति के होते हैं। (विकीलीक्स के खुलासे में सामने आया था कि देश के बहुसंख्यकों को लेकर सोनिया गांधी और राहुल गांधी की इस तरह की मानसिकता है।) जबकि ‘अल्पसंख्यक’ तो दूध के दुले हैं। वे तो करुणा के सागर होते हैं। अल्पसंख्यक समुदायक के तो सब लोग अब तक संत ही निकले हैं।
2- दंगो और सांप्रदायिक हिंसा के दौरान यौन अपराधों को तभी दंडनीय मानने की बात कही गई है अगर वह अल्पसंख्यक समुदाय के व्यक्तियों के साथ हो। यानी अगर किसी बहुसंख्यक समुदाय की महिला के साथ दंगे के दौरान अल्पसंख्यक समुदाय का व्यक्ति बलात्कार करता है तो ये दंडनीय नहीं होगा।
3- यदि दंगे में कोई अल्पसंख्यक घृणा व वैमनस्य फैलता है तो यह अपराध नहीं माना जायेगा, लेकिन अगर कोई बहुसंख्यक ऐसा करता है तो उसे कठोर सजा दी जायेगी। (बहुसंख्यकों को इस तरह के झूठे आरोपों में फंसाना आसान होगा। यानी उनका मरना तय है।)
4- इस अधिनियम में केवल अल्पसंख्यक समूहों की रक्षा की ही बात की गई है। सांप्रदायिक हिंसा में बहुसंख्यक पिटते हैं तो पिटते रहें, मरते हैं तो मरते रहें। क्या यह माना जा सकता है कि सांप्रदायिक हिंसा में सिर्फ अल्पसंख्यक ही मरते हैं?
5- इस देश तोड़क कानून के तहत सिर्फ और सिर्फ बहुसंख्यकों के ही खिलाफ मुकदमा चलाया जा सकता है। अप्ल्संख्यक कानून के दायरे से बाहर होंगे।
6- सांप्रदायिक दंगो की समस्त जवाबदारी बहुसंख्यकों की ही होगी, क्योंकि बहुसंख्यकों की प्रवृति हमेशा से दंगे भडकाने की होती है। वे आक्रामक प्रवृति के होते हैं।
7- दंगो के दौरान होने वाले जान और माल के नुकसान पर मुआवजे के हक़दार सिर्फ अल्पसंख्यक ही होंगे। किसी बहुसंख्यक का भले ही दंगों में पूरा परिवार और संपत्ति नष्ट हो जाए उसे किसी तरह का मुआवजा नहीं मिलेगा। वह भीख मांग कर जीवन काट सकता है। हो सकता है सांप्रदायिक हिंसा भड़काने का दोषी सिद्ध कर उसके लिए जेल की कोठरी में व्यवस्था कर दी जाए।
8- कांग्रेस की चालाकी और भी हैं। इस कानून के तहत अगर किसी भी राज्य में दंगा भड़कता है (चाहे वह कांग्रेस के निर्देश पर भड़का हो।) और अल्पसंख्यकों को कोई नुकसान होता है तो केंद्र सरकार उस राज्य के सरकार को तुरंत बर्खास्त कर सकती है। मतलब कांग्रेस को अब चुनाव जीतने की भी जरूरत नहीं है। बस कोई छोटा सा दंगा कराओ और वहां की भाजपा या अन्य सरकार को बर्खास्त कर स्वयं कब्जा कर लो।
सोनिया गांधी के नेतृत्व में इन ‘देशप्रेमियों’ ने ‘सांप्रदायिक एवं लक्षित हिंसा निवारण विधेयक-२०११’ को तैयार किया है-
1. सैयद शहबुदीन
2. हर्ष मंदर
3. अनु आगा
4. माजा दारूवाला
5. अबुसलेह शरिफ्फ़
6. असगर अली इंजिनियर
7. नाजमी वजीरी
8. पी आई जोसे
9. तीस्ता जावेद सेतलवाड
10. एच .एस फुल्का
11. जॉन दयाल
12. जस्टिस होस्बेट सुरेश
13. कमल फारुखी
14. मंज़ूर आलम
15. मौलाना निअज़ फारुखी
16. राम पुनियानी
17. रूपरेखा वर्मा
18. समर सिंह
19. सौमया उमा
20. शबनम हाश्मी
21. सिस्टर मारी स्कारिया
22. सुखदो थोरात
23. सैयद शहाबुद्दीन
24. फरह नकवी
Communal Violence Bill:
The Congress gameplan
In a regime dominated by scams, scandals and corruption, the Congress has zeroed in on the Communal Violence Bill as the piece de resistance of UPA II in a bid to shift the focus from its own corruption to taking on the BJP and in the process isolating it from its own allies.With Bharatiya Janata Party's Arun Jaitley launching a strong attack against the bill, in hisexclusive column in rediff.com on the grounds that it goes against the federal structure of the constitution, the Congress has fast tracked its drafting of the bill and has said that it wants to bring in the bill in the monsoon session of Parliament that is expected to begin in mid July.
With the BJP hoping to use the bill to communally polarise the country on the issue, Congress leaders have been quick to respond by saying that the BJP will not be able to play along its planned agenda, and would find the situation of 2011 vastly different from what it was in 1992 (the Babri Masjid demolition).
सोनिया गाँधी _SONIA GANDHI |
The Congress has already begun the task of sounding out political parties on the issue and feels that the numbers in the Rajya Sabha would also not be a problem since the Samajwadi party, the Bahujan Samaj Party, the Rashtriya Janata Dal would find it difficult to oppose the strong provisions in the bill.
Even the Left and the Telugu Desam Party would not like to be seen to be with the BJP, which is taking the political line of violating the federal spirit and apprehensions of encroaching upon the state's domain.
"We will fight them to the end on this issue, there won't be compromises. There will be huge political cost involved for anybody who sides with the BJP on this issue," said a senior Congress leader.
The Bill is at a preparatory stage and the draft suggested by the National Advisory Council will undergo scrutiny at different levels. Even Congress leaders admit there would be a need for fine tuning and the standing committee of Parliament will have a close look at every clause.
But they outright dismiss the BJP's objections, arguing that they were born out of their communal mindset and fears of legal reprisal. The BJP had described the draft as "dangerous, draconian, discriminatory and damaging to India's federal policy."
Congress spokesperson Abhishek Singhvi said "the BJP is free to challenge the constitutional validity of the law after it is enacted. Let it be tested in the court instead of trying to abort it before its birth on petty and trivial grounds. The BJP's pernicious propaganda is reflective of its communal agenda and guilt complex."
Singhvi said the Congress was determined to bring the Bill in the next session of Parliament despite the BJP's objections and the attempt to communalise the legislation itself. The BJP had said the Bill was against the interest of the majority.
Singhvi said though it is a focused enactment aimed at inspiring confidence in the minorities and for protecting them from communal violence, he rubbished the idea that it was targeted at Hindus.
He said, "A party proudly bound by the umbilical chord of the Rashtriya Swayamsevak Sangh, a party that subscribes to the teachings of Golwarkar, a party that takes pride in the Babri mosque demolition and refuses to express regret for Gujarat riots is naturally worried."
He also debunked the BJP's charge of Centre's design to encroach upon the state's territory, saying all but one of the 60 clauses give power to the state while even the clause 55, which allows the Centre to intervene has safeguards.
The Centre will first advise the state in the case of a communal flare-up, wait for the action and intervene only if the state's inaction escalates violence.
Union HRD minister Kapil Sibal said the Gujarat experience, where even an FIR had not been registered in many cases and the Supreme Court appointed SIT was examining after nine years if an FIR has to be lodged or not, there is a strong case for central intervention in extraordinary cases.
"We want a mechanism to ensure that the state and the administration are held accountable in case of mass killing," he said.
While the promise to bring the Communal Violence Bill was made in the 2004 manifesto, the Congress failed to bring it in UPA I primarily because of the stiff opposition to it. But sources in the party say that with elections in UP slated for next year, the Congress would like to make this bill the centre-piece of governance agenda and send out the signal that the government would in future bring to book any leaders who targeted a community for votes and is also a strong message against communal violence and giving a sense of security to the minorities.
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