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देश में आज भी गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले 41 प्रतिशत से ज्यादा हैं। पूरा भारत वर्ष इन्हीं 41 फीसदी लोगों के बदौलत चल रहा है। जो मध्यम वर्ग का है वो अपने जीवन को एक स्तर पर ठीक-ठाक चला लेता है और जो अमीर है वो वैसे भी हिन्दुस्तान से ज्यादा विदेशी सैर सपाटे में उलझा रहता है। आम आदमी ही है जो मंदिर, मस्जिद, गुरूद्वारा और चर्च में जाकर सभी की सलामती की दुआएं करता है। बाकी करोड़पति, व्यवसाईयी लोगों को तो धन कमाने से ही फुरसत नहीं है। वो भला भगवान के द्वार पर जाकर भी क्या करेंगा? भगवान ने उन्हें पहले से ही सब कुछ दे रखा है।
जो करोड़ो की सम्पत्ति के बलबूते पर खुद को सम्पन्न समझते हैं। वो अपने धन को भगवान के चरणों से ज्यादा स्वीच बैंकों में सुरक्षित समझते हैं। वहीं देश का आम आदमी जो गरीबों की गिनती में आता है, भगवान, ईश्वर अल्ला, वाहगुरू, रव, खुदा, गोड, में भरोसा रखता है। वही लोग हैं जो मंदिरों में अपनी खून पसीने की कमाई को भगवान के चरणों में समर्पित करते है। इस उम्मीद के साथ कि आज नहीं तो कल ऊपर वाला उनकी मन की मुराद पूरी करेगा। किसी की कन्या का विवाह होना है। किसी को अपने बेटे की नौकरी की दुआ करनी है। कोई अपना खुद का घर बनाना चाहता है। तो कोई ईश्वर से सबकी सलामती की दुआ करता है। ऐसे ही लोग भगवान के चरणों में कुछ न कुछ समपर्ण की भावना से जाते हैं।
हिन्दुस्तान का इतिहास अगर देखा जाए तो लाखों वर्षों से यही रीत चली आ रही है। फिर चाहे वो किसी राजा का साम्राज्य रहा हो, किसी राजा की रियासत रही हो, लालाओं की जमीदारी हो या फिर आज के दौर की लोकतांत्रिक व्यवस्था सभी युगों में धर्म आस्था पर करोड़ों रूपये न्यौछावर करने वालों की कमी नहीं रही। लेकिन वो सारी धन संपदा उस आम आदमी की हैं जो दिन भर मेहनत मजदूर करने के बाद अपनी कमाई का कुछ अंश भगवान को समर्पित करता है।
हमें इन सब बातों को इस बजह से भी उठाना पड़ा है कि बीते कुछ माह से मंदिरों में मिली अटूट सम्पत्ति ने आम आदमी की आंखें खोल दी है। जिसने भी मंदिरों से मिले खजाने की बात को सुना उसके कान खड़े के खड़े रह गये, जिसने देखा तो उसकी आंखे फटी की फटी रह गयी। जहां मंदिरों के बाहर भिखारी एक-एक रूपये की भीख मांगकर अपना पेट भरने की कोशिश करता है। वहीं मंदिरों के अंदर इतनी सम्पत्ति को संग्रहित करके रखा गया था।
बीते फरवरी माह में उड़ीसा के धार्मिक शहर पुरी में 700 साल पुराने एक मठ से चांदी की 522 ईंटे मिली। बरामद हुई ईंटों का वजन 18.87 टन है और बाजार में इसकी कीमत करीब 90 करोड़ रुपए है। चार बड़े संदूकों में बंद ये ईंटें पुरी के विश्व प्रसिद्ध जगन्नाथ मंदिर के ठीक सामने स्थित एमार मठ के एक बंद तहखाने में से मिली हैं। चांदी की ये ईंटें कम से कम सौ साल पुरानी हैं। एक ईंट का वजन 38-40 किलो है और कई ईंटों पर सैन फ्रांसिस्को, शंघाई और कलकत्ता शब्द खुदे हुए हैं। हमने इस बारे में पुरातत्व विभाग को सूचना दे दी है। उनके विशेषज्ञों द्वारा इन ईंटों कि जांच के बाद ही उनकी प्राचीनता के बारे में सही तथ्य पता चलेगा।
इसके बाद सत्य साईं बाबा के निधन के बाद उनके ट्रस्ट में भी 5000 करोड़ रूपये की संपत्ति का मिलना लोगों के लिए किसी अचम्भे से कम नहीं था। फिर देश के एक और बड़े खजाने का खुलासा हुआ। केरल के श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर में बरसों से छिपी अकूत संपदा का पता चला है। केरल में त्रावणकोर के राजा इस मंदिर के मालिक रहे। भारत की आजादी से केवल एक साल पहले पाँच सौ से ज्यादा राज्यों ने गदर का परचम उठाया। ये सभी राज्य आजादी की मांग कर रहे थे। लेकिन आखिरकार त्रावणकोर रियासत ने भारत में शामिल होने का फैसला कर लिया। भारतीय संघ में शामिल होने के बावजूद उनका 16वीं शताब्दी के श्री पद्मनाभास्वामी मंदिर पर अधिकार बना रहा।
अटकलें लगायी जा रही हैं कि मंदिर के छह तहखानों में कितनी संपत्ति होगी? यहाँ बेहद पुराने सोने की जंजीरें, हीरे-जवाहरात और कीमती पत्थर रखे होने की अटकलें लगाई जा रही हैं। इस संपत्ति की कीमत पैसे में नहीं आँकी जा सकती। एक रिपोर्ट में कहा गया है कि यहाँ सोने से भरी 450 हांडियाँ, 2,000 रूबी और जड़ाऊ मुकुट, सोने की 400 कुर्सियाँ और एक मूर्ति जिसमें 1,000 हीरे जड़े हुए हैं। इनकी कीमत बीस अरब डॉलर बताई जा रही है जो कि भारत का शिक्षा बजट जितना है।
माना जाता है कि श्री पद्मानाभास्वामी (विष्णु) मंदिर के चार में से दो तहखानों को पिछले 130 वर्षों से खोला नहीं गया था। जबकि छठे तहखाने को खोलना अभी भी बाकी है। मंदिर का छठा तहखाना खुलने पर क्या होगा यह तो सवालों के घेरे में हैं? 16वीं सदी के इस मंदिर भूमिगत तहखानों से अरबों रुपए के कीमती हीरे, सोना और चांदी बरामद होना इस बात की गवाही है कि देश में श्रद्धा और आस्था के चलते लोगों ने कितनी संपत्ति को मंदिरों में जमा कर रखा है।
मंदिरों में जमा यह धन संपदा किस काम की जब देश में भुखमरी, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार से गरीबी अपना दम भर रही हो। अनुमान लगाया जा रहा है मंदिर में प्राप्त संपदा इतनी है जिससे देश का शिक्षा बजट चलाया जा सकता है और शिक्षा बजट ही क्यों न जाने कितने बजट चलाये जा सकते हैं। तो फिर इस धन को किसी नेक काम में क्यों नहीं लगाते? और ऐसा न जाने कितने मंदिर होंगे जिनमें लाखों-करोड़ों की संपत्ति भरी पड़ी होगी।
फिलहाल जो भी हो इस संपदा को देखने के बाद हर कोई यही कहेंगा कि ‘भिखारियों के देश में धनी भगवान’ जहां गरीबी के चलते लोग भिक्षावृत्ति के लिए मजबूर हैं और भगवान के मंदिरों में धन दौलता का अम्बार लगा है।
1 टिप्पणी:
Bharat sone ki chidiya pahle bhi kahlata tha aage bhi kahlayega..
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