तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे भाषा के विशेषज्ञ पढ़कर कहें कि ये कलम का छोटा सिपाही ऐसा है तो भीष्म साहनी, प्रेमचंद, महादेवी वर्मा, जयशंकर प्रसाद, सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला', हरिवंश राय बच्चन, फणीश्वर नाथ रेणु आदि कैसे रहे होंगे... गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.

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भारत में चलते है भूटानी रुपये


पश्चिम बंगाल के डुअर्स क्षेत्र में रहने वाले बच्चाे भारतीय और भूटानी मुद्रा में अंतर नहीं कर पाते। वहां के बाजार में आसानी से दोनों नोट चल जाते हैं। लेन-देन करने वालों को विदेशी भूटानी मुद्रा की वजह से इस क्षेत्र में किसी प्रकार की परेशानी नहीं होती। यहां कई जगहें ऐसी हैं जहां कटे-फटे भारतीय नोट नहीं चलते, लेकिन भूटान की मुद्रा यदि उसी हालत में है तो दुकानदार फौरन ले लेते हैं।

पश्चिम बंगाल के नई जलपाईगुड़ी जिले के डूअर्स क्षेत्र के बेलपाड़ा, नांगड़ाकाटा, तेलीपाड़ा, बीनागुड़ी, दालगांव और इथेबाड़ी में रहने वाले लोगों के लिए भूटानी मुद्रा न्यूट्रम बिल्कुल भी अपरिचित नहीं है। उन्हें यह अपना सा ही लगता है। 26 वर्षीय दीप बसु हैमिल्टनगंज में एक गैर सरकारी संस्था ‘फैमिली प्लानिंग एसोसिएशन ऑफ इंडिया’ के साथ काम करते हैं। दीप के अनुसार जब से उन्होंने होश संभाला है, उस समय से निर्बाध रूप से इन नोटों को बाजार में चलते हुए वे देख रहे हैं।


जानकार कहते हैं, इस क्षेत्र में नोट माफिया सक्रिय हैं। जबकि भारतीय मुद्रा और भूटानी मुद्रा में अंतर बेहद मामूली है, उसके बावजूद काले धन को एक नंबर का बनाने वाले गिरोह, भूटानी नोटों की तस्करी सीमा से कर रहे हैं। 90 के दशक के शुरुआती वर्षों में जब पूवरेत्तर भारत में उल्फा जैसे आतंकी संगठनों की सक्रियता चरम पर थी, उस जमाने में इस क्षेत्र में किसी प्रकार की वसूली भूटानी मुद्रा में ही होती थी। इस क्षेत्र में भूटानी मुद्रा के बढ़ते चलन की वजह से भारत सरकार को प्रतिवर्ष करोड़ों रुपए का नुकसान हो रहा है।


क्षेत्र के सामाजिक कार्यकर्ता आशिम कुमार मजाूमदार के अनुसार, नवगांव जो भूटान की सीमा के साथ लगा हुआ है, वहां आप 500 या 1000 रुपए के भूटानी नोट चलाना चाहेंगे तो जल्दी कोई लेने को तैयार नहीं होगा, लेकिन वही नोट आप डुअर्स क्षेत्र में सीमा से 25-30 किलोमीटर दूर ले जाकर कालचीनी, कालपाड़ा, हाशिमआरा, नंगड़ाकाटा और बानरहाटा में चलाएं तो आसानी से चल जाएगा।’ आजकल डुअर्स के कई चाय बगानों में मजादूरों को पारिश्रमिक भी भूटानी मुद्रा में मिलने लगा है।

डुअर्स में धीरे-धीरे भारतीय एक, दो, पांच, दस रुपए के नोट और सिक्के गायब हो रहे हैं। उनकी जगह बाजार पर भूटानी न्यूट्रम काबिज हो रहा है। जो एक चिन्ता का विषय है। जयगांव स्थित ‘न्यू अन्नपूर्णा होटल’ के प्रबंधक उत्तम देव के अनुसार- ‘यहां सारा काम भूटान की मुद्रा पर निर्भर है। यदि हमने उसे लेना बंद कर दिया तो होटल बंद करना पड़ेगा। हमारा कारोबार बंद हो जाएगा।’

भूटानी मुद्रा के बढ़ते प्रभाव पर जब स्थानीय दुकानदारों से बातचीत हुई, तो उन्होंने बाजार में भारतीय रुपए और सिक्कों की कमी का रोना रोया। उनके अनुसार यदि सरकार इस क्षेत्र में भारतीय मुद्रा की समुचित व्यवस्था करे फिर उन्हें क्या पड़ी है, भूटानी मुद्रा से लेन-देन करने की। कई दुकानदारों को भी इस बात की जानकारी नहीं थी, कि भूटानी मुद्रा से भारत में कारोबार करना कानूनन अपराध है।

पुलिस अनजान नहीं बात पुलिस की करें तो वह इन सभी गतिविधियों से अंजान नहीं है। वह स्वीकार करती है, ‘भूटान से लगे जयगांव और महाकालगड़ी जैसे सीमावर्ती इलाके इस तरह के गैर कानूनी लेन-देन के केन्द्र के तौर पर विकसित हो रहे हैं। भूटान के व्यापारी डुअर्स के व्यापारियों की मदद से एक रुपए से हजार रुपए तक के नोट बाजार में उतार रहे हैं।’

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