तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे भाषा के विशेषज्ञ पढ़कर कहें कि ये कलम का छोटा सिपाही ऐसा है तो भीष्म साहनी, प्रेमचंद, महादेवी वर्मा, जयशंकर प्रसाद, सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला', हरिवंश राय बच्चन, फणीश्वर नाथ रेणु आदि कैसे रहे होंगे... गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.

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गरीबी ने पैदा किए हैं लालगढ़ की समस्याएं


पहली नजर में तो लालगढ़ और इसके निवासी किसी आम गांव की तरह ही नजर आते हैं। यहां आने वाले
लोगों से भी कम यहां से जाने वालों की तादाद है। पर लालगढ़ की इस खामोशी के तले माओवादियों का आतंक रूपी लावा सुलग रहा है। पश्चिमी मिदनापुर का यह इलाका राजधानी कोलकाता से 180 किलोमीटर दूर है।

पिछले कई दशकों से ग्रामीण आदिवासियों वाले लालगढ़ में नक्सलियों की वजह से कई बंदूकें और बम पहुंचे हैं। गांव के अनपढ़ लड़कों में भी सीपीएम प्रशासन के भ्रष्टाचार के प्रति रोष है। बीते 30 वर्षों में लेफ्ट फ्रंट ने दूरस्थ गांवों को जोड़ने के लिए सड़कें नहीं बनवाई हैं। काम के नाम पर बस इतना हुआ है कि झारग्राम और बेलपहाराई के जिला हेडक्वॉर्टरों के बीच एक बस रोज चलती है।

पास के गांवों अमलासोल और आमझोरा में भुखमरी से हुई मौत का पहला मामला सामने आया था। राज्य प्रशासन की नाकामी का यह साफ सबूत है। यहां तक कि राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गांरटी योजना भी अयोध्या हिल्स और बेलपहाड़ी के जंगलात से लगे गांवों के लोगों उकील मुरमु, गायनस्वर मुरमु, गोर मुरमु और धीरेन मानकी की आजीविका यहां कुछ कर पाने में नाकाम रही है। इनमें से किसी को भी सौ दिनों का रोजगार नहीं मिल पाया है।

बरनाजारा गांव के बलराम हंसदा के मुताबिक, मुझे अपना जॉब कार्ड तीन साल पहले मिल गया था। इन सालों में काम पाने के लिए मेरी अजीर् ग्राम पंचायत में ही अटककर रह गई। पिछले महीने हमें गांव में सड़क बनाने का काम मिला था। वह सिर्फ 15 दिन के लिए था, पर पैसे के नाम पर हमें अभी तक कुछ नहीं मिला है। जहां तक मैं जानता हूं पैसा वापस जा चुका है। कोई नहीं जानता कि काम फिर कब शुरू होगा।

चार दिन तक काम करने के बाद उकील मुरमु, उसकी पत्नी बिंती और पिता गयेश्वर को 1070 रुपये मिले। इस पैसे में ही उन्हें अब बाकी 361 दिनों तक गुजर-बसर करनी होगी। उकील के मुताबिक, अब और काम नहीं है। हमारे पास अपनी कोई जमीन भी नहीं है। वैसे भी इस इलाके में खेती का काम सिर्फ बारिश के बाद ही मुमकिन होता है। हमें जमीन मालिकों से काम मांगना पड़ता है। हम जैसे कई सैकड़ों लोग काम की तलाश में हैं। अगर सौ दिन का काम मिल जाता तो हमारी बड़ी मदद हो सकती है।