तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे भाषा के विशेषज्ञ पढ़कर कहें कि ये कलम का छोटा सिपाही ऐसा है तो भीष्म साहनी, प्रेमचंद, महादेवी वर्मा, जयशंकर प्रसाद, सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला', हरिवंश राय बच्चन, फणीश्वर नाथ रेणु आदि कैसे रहे होंगे... गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.

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क्या मैच का फैसला ऊपरवाला करता है?


कल के मैच के बाद मैं सोच रहा हूं कि क्या अल्लाह नहीं चाहता था कि पाकिस्तान जीते। आप कहेंगे कि आखिर एक क्रिकेट मैच से अल्लाह या भगवान का क्या लेना-देना। लेकिन अगर मैच से पहले कुछ पाकिस्तानी प्रशंसकों की बातें आपने सुनी होंगी तो उनसे यही निष्कर्ष निकलता है कि पाकिस्तान कल का सेमीफाइनल मैच इसलिए हारा कि अल्लाह की पाकिस्तान को इच्छा नहीं थी। मैच से पहले ‘टाइम्स नाउ’ चैनल भारत और पाकिस्तान के क्रिकेट फैंस की बातचीत दिखला रहा था। यहां वाले कहते थे - भारत जीतेगा, वहां के लोग कहते थे – पाकिस्तान जीतेगा। फर्क बस यह था कि पाकिस्तान के लोग अपने दावे के बीच अल्लाह को भी बेवजह ला रहे थे। उनका कहना था – इंशाअल्लाह, पाकिस्तान बढ़िया खेलेगा और मैच जीतेगा। उर्दू मैं ज्यादा नहीं जानता लेकिन इंशाअल्लाह का तो यही मतलब समझता हूं कि अल्लाह की मर्जी हुई तो... यानी अल्लाह ने चाहा तो पाकिस्तान जीतेगा। इसको उलट दें तो आप यह भी कह सकते हैं कि अल्लाह की मर्ज़ी नहीं हुई तो पाकिस्तान नहीं जीतेगा। तो अब जब पाकिस्तान हार गया है तो इन लोगों को यही समझना चाहिए कि अल्लाह की मर्ज़ी यही थी कि पाकिस्तान हारे, इसीलिए पाकिस्तान हारा है और इसके लिए किसी तरह का दुख या शोक नहीं करना चाहिए। इसी तरह जब हरभजन सिंह मैच के बाद टीवी पर आए तो अपने प्रदर्शन के लिए सिख गुरुओं को श्रेय दिया। इससे मुझे कोई गुरेज़ नहीं। कोई भी व्यक्ति अपनी कामयाबी का श्रेय किसी को भी दे सकता है। लेकिन मुद्दा यह है कि आज अगर आप मानते हैं कि आपने जो विकेट लिए, वे इसलिए कि आज आपके गुरुओं की आप पर कृपा थी तो जिस दिन आपकी बॉल पर छक्के लगते हैं, उस दिन आपको यही मानना चाहिए कि आज आपके गुरुओं की कृपा आप पर नहीं है। मामला सिर्फ सिखों और मुसलमानों का नहीं है। हिंदुओं में कई लोग ऐसे हैं जिन्होंने कल के मैच के लिए अपने-अपने इष्टदेवों से प्रार्थना की होगी। कहीं-कहीं तो वाकई पूजा और हवन भी हुए। अब ऐसे सारे लोग आज यही मानते होंगे उनके भगवानों की कृपा से ही भारत फाइनल में पहुंचा है और उन्हीं की कृपा से वह कप भी जीतेगा। बहुत मुमकिन है कि अब श्रीलंका से होनेवाले फाइनल मुकाबले से पहले भी ऐसी ही और पूजा-अर्चनाएं होंगी। मेरा इन सभी से निवेदन है कि भैया, अगर आप लोग यह मानते हो कि आपके भगवानों को क्रिकेट में उतनी ही दिलचस्पी है जिनकी कि आपको है और वह वहां बैठा-बैठा यह तय करता है कि आज भारत को जिताया जाए या पाकिस्तान या श्रीलंका को तो आपसे सुखी कोई और इंसान हो ही नहीं सकता। क्योंकि अगर सबकुछ ऊपरवाले को तय करना है तो आप काहे को अपनी आंखें फोड़ रहे हैं और नींद खराब कर रहे हैं। जैसे अब अगला मैच शनिवार को है। अगर आपके भगवानों ने फैसला कर ही रखा होगा कि किसको जिताना है तो आप क्यों परेशान हो रहे हैं? अगर उसने तय कर रखा होगा कि भारत को कप जिताना है तो जितवा देगा, उसने सोच लिया होगा कि सचिन की सौवीं सेंचुरी फाइनल मुकाबले में होनी है तो हो जाएगी। उसकी इच्छा नहीं होगी तो न भारत वर्ल्ड कप जीतेगा न सचिन की इस दफे सौवीं सेंचुरी होगी। मैं तो भई यह नहीं मानता कि अल्लाह या भगवान या वाहेगुरु ने यह तय कर रखा होगा कि किसी क्रिकेट मैच में किसको जिताना है। आज की तारीख में टॉप की सारी टीमें एक जैसी हैं तो किसी दिन कोई भी टीम जीत सकती है और जो यह दावा करते हैं कि भारत या श्रीलंका या कोई भी टीम बेस्ट है, वे केवल ख्याली पुलाव पका रहे हैं। आप ग्रुप मैचों के फैसलों पर नजर दौड़ाएं। ग्रुप ‘ए’ में पाकिस्तान ने श्रीलंका को हराया, श्रीलंका ने न्यू ज़ीलैंड को हराया और न्यू ज़ीलैंड ने पाकिस्तान को हराया। अब बताइए, इन तीनों में से कौनसी टीम सर्वश्रेष्ठ है? इसी तरह ग्रुप ‘बी’ में इंग्लैंड ने साउथ अफ्रीका को हराया, साउथ अफ्रीका ने भारत को हराया, भारत ने वेस्ट इंडीज़ को हराया, वेस्ट इंडीज़ ने बांग्लादेश को हराया और बांग्लादेश ने इंग्लैंड को हराया। अब बताइए, इन पांचों में कौन-सी टीम सर्वश्रेष्ठ कही जाएगी? तो अपने धोनी बाबा सही कहते हैं कि किसी खास दिन जो टीम अपना बेस्ट प्रदर्शन करती है, वही टीम जीतती है। धोनी का एक भी बयान मैंने नहीं पढ़ा जिसमें उन्होंने कहा हो कि हम वर्ल्ड कप जीतकर लाएंगे। बताइए, जो अपनी टीम के बारे में सबसे ज्यादा जानता है, वह भी नहीं कह रहा है कि हम विश्व विजेता बनेंगे क्योंकि वह जानते हैं कि मैच का फैसला न तो कोई भगवान करता है, न ही कोई टीम। मैच के फैसले में दोनों टीमों की मानसिक-शारीरिक क्षमता के अलावा पिच की स्थिति, टॉस में हार या जीत और किस्मत का भी बहुत बड़ा हाथ होता है। अब कल के मैच को ही लें - अगर सचिन के 4 कैच ड्रॉप नहीं होते तो क्या हम आज फाइनल में होते? अगर पाकिस्तानी टीम ने मैच में कुल 7 कैच छोड़े न होते (सात खून जिसके लिए पाकिस्तानी मीडिया और लोग उन्हें माफ नहीं करेंगे) तो क्या आप आज खुशियां मना रहे होते?  वनडे मैचों की तुलना हम अपने रोज़ के सफर से कर सकते हैं। जैसे मैं अपने बारे में कहूं तो घर से दफ्तर का अपना सफर मैं आधे घंटे से लेकर एक घंटे तक में पूरा करता हूं। अगर जल्दी निकला तो ट्रैफिक कम मिलता है और मैं आधे घंटे में पहुंच जाता हूं। देर से निकला तो ट्रैफिक बढ़ जाता है और ज्यादा समय लगता है। यानी वहीं मैं, वही मेरी गाड़ी और वही 20 किलोमीटर का सफर, लेकिन मैं कितनी देर में दफ्तर पहुंचूंगा, मैं खुद भी नहीं जानता क्योंकि कई बार तो जल्दी निकलने के बावजूद ज्यादा समय लग जाता है – कभी कहीं कोई ट्रक उलटा पड़ा है, कहीं कोई सड़क खुदी हुई है, कभी सिग्नल काम नहीं कर रहा है, कभी किसी ने रास्ता रोक रखा है, कभी मेरी गाड़ी का टायर ही पंक्चर हो गया। जिस तरह ट्रैफिक में हमें इस तरह की अनपेक्षित बाधाओं से दो-चार होना होता है, उसी तरह मैच में भी किसी भी बॉल पर कुछ अजीब-सा घट सकता है और मैच इधर से उधर हो सकता है। कल युवराज पहली ही बॉल में आउट हो जाएंगे, क्या किसी हिंदुस्तानी ने सोचा था? सचिन के 4 कैच ड्रॉप होंगे, क्या किसी पाकिस्तानी ने सोचा था? तो जिस तरह मैं अपने ड्राइविंग टैलंट और कार की अच्छी स्थिति के बावजूद कभी भी दावे के साथ यह नहीं कह सकता कि आज मैं हर हाल में 30 मिनट में ऑफिस पहुंच कर दिखाऊंगा, उसी तरह कोई क्रिकेट फैन यह नहीं कह सकता कि हमारी टीम ही जीतेगी। आप तमन्ना कीजिए कि भारत जीते लेकिन इसके लिए भी तैयार रहें कि भारत हार सकता है। मैं तो बस यही चाहता हूं कि मैच अच्छा हो, थ्रिलिंग हो। भारत जीते तो मुझे बहुत ही खुशी होगी... और हारेगा तो खराब भी लगेगा लेकिन हारे तो भी वैसे न हारे जैसे 1996 में हारा था। तो शनिवार का मैच देखने के लिए तैयार हो जाइए, भारत की जीत की कामना कीजिए... लेकिन प्लीssssज़, अपने-अपने भगवानों को डिस्टर्ब मत कीजिए कि इंडिया को जिता दो और श्रीलंका को हरा दो। (यह लेख नीरेंद्र नगर जी ने इ.टी. के लिए लिखा है..)

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