महंगाई से पिसते मजबूरों का
संतों का, महात्माओं का,
पगडण्डी पर पड़े गावों का
देश भारतवर्ष
कैसे मनाएं हर्ष...?
जब देश की दौलत
नेता की बदौलत
देश की सीमा से परे
स्विस बैंक की तिजोरी भरे
जब भारत के गरीब लोग
भूख से तड़पकर मरे
तब हाथ पर हाथ धरे
जो खामोश रहने का कुकर्म करे
गलत को गलत बताने में
जिनकी जिह्वा को
मार जाये लकवा
तो सुनो बचुवा
ऐसा जीना भी कोई जीना है...?
न भुज बल है न सीना है
बिल में घुसे चूहे
परिवर्तन का शंखनाद नहीं करते
जो सच के हिमायती हैं
वो कष्टों से नहीं डरते
तो बहुत हो चुका
बर्दाश्त की सीमा से बहार आओ
जिन्होंने खून चूसा है
उनका खून चूसकर दिखाओ
अभी असली आज़ादी नहीं आई है
न तेल, न धनिया, न जीरा, न राई है
किचन के कनस्तर खाली हैं
कलाली पर भीड़ है, मवाली हैं
देश को दारू के दरिया में
मत बहने दो
कलमकार को अपनी वाणी
कहने दो
समाज को नोचने वाले गिद्धों के
पर काट दो
जागो जनता जनार्दन
कैक्टसों को छांट दो
क्योंकि....
जिस नस्ल को मिटने का
एहसास नहीं होता
इतिहास नहीं होता.
ममता दीदी को मजबूत बनाओ
बंगाल को बर्बाद होने से बचाओ.
(मुख्य कविता राजीवजी का और संक्षिप्त जोड़ राजेश मिश्रा का)
ममता दीदी को मजबूत बनाओ
बंगाल को बर्बाद होने से बचाओ.
(मुख्य कविता राजीवजी का और संक्षिप्त जोड़ राजेश मिश्रा का)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें