तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे भाषा के विशेषज्ञ पढ़कर कहें कि ये कलम का छोटा सिपाही ऐसा है तो भीष्म साहनी, प्रेमचंद, महादेवी वर्मा, जयशंकर प्रसाद, सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला', हरिवंश राय बच्चन, फणीश्वर नाथ रेणु आदि कैसे रहे होंगे... गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.

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Khidirpur ka Eaitihasik Bhukailash Mandir

खिदिरपुर का भुकैलाश शिवमंदिर : राजेश मिश्रा
कोलकता के खिदिरपुर अंचल में स्थित है भुकैलाशगढ़ जहाँ पर विश्व के वृहत्तम दो शिवलिंग दो शिवमंदिरों श्री रक्त कमलेश्वर और श्री कृष्ण चंद्रेश्वर में स्थापित हैं. आज से लगभग तिन वर्ष पहले ख्रिस्ताब्द १७८१ में निर्मित इन मंदिरों के परिसर में प्रतिवर्ष शिरात्रि के पावन पर्व पर एक भव्य मेला का आयोजन होता है तथा शिव भक्तों की अपरम्पार भीड़ एकत्र होती है तथा उनके द्वारा उच्चारित "हर हर महादेव" और  जय बम भोले के महोच्चार से दिग-दिगंत निनादित हो उठते हैं.
इन मंदिरों का निर्माण महाराज श्री जयनारायण घोषाल ने कराया था. महाराजा जय नारायण घोषाल के पूर्वज स्वर्गीय रामकृष्ण पाठक मूलतः: वाराणसी (काशी) के निवासी थे तथा बंगाल में आकर गोविंदपुर में बस गए थे. रामकृष्ण पाठक के पुत्र राजेंद्र पाठक और राजेंद्र पाठक के दो पुत्र विष्णुदेव पाठक और कृष्णदेव पाठक थे. स्वनामधन्य कृष्णदेव पाठक के पुत्र कंदर्प पाठक थे जिनके नाम के साथ पाठक के स्थान पर जाति सूचक नाम घोषाल संयुक्त हुआ. कशी का यह पाठक परिवार अत्यंत धार्मिक ब्रह्मण परिवार था जिसने बंगभूमि में भी अपने सदाचार एवं धार्मिकता की चाप छोड़ दी है. सन १९३३ ई. में प्रकाशित 'हंस' पत्रिका से पता चलता है की भुकैलाश गढ़ के युगल शिवमंदिरों के निर्माता महाराजा जय नारायण घोषाल का जन्म १७५१ ई. में हुआ था. उन्होंने ३०० भिघा भुइमी क्रय करके भुकैलाशागढ़ जो सिंहद्वार, युगल शिवमंदिर एवं एक सुन्दर जलाशय शिव गंगा का निर्माण कराया था. उन्होंने ही मंदिर परिसर में शिवरात्रि के अवसर पर जो मेला आरम्भ किया वह आजतक अक्षुण एवं प्रवहमान है.
महाराज की उपाधि इस प्रवासी वेड-विद सनातन धर्मों ब्राहमण वंश को उसकी पार्थिव स्म्रिधि एवं वैदुश्य-वैभव के कारन तत्कालीन अंग्रेज बड़े लाट वारेन हेस्टिंग्स एवं मुग़ल बादशाह मोहम्मद जहादर शाह से सन १७८१ ई. में प्राप्त हुई थी. 

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