तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे भाषा के विशेषज्ञ पढ़कर कहें कि ये कलम का छोटा सिपाही ऐसा है तो भीष्म साहनी, प्रेमचंद, महादेवी वर्मा, जयशंकर प्रसाद, सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला', हरिवंश राय बच्चन, फणीश्वर नाथ रेणु आदि कैसे रहे होंगे... गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.

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MAOWADIYON KA GHINAUNA CHEHRA

माओवादियों का घिनौना चेहरा
महिलाओं से कर रहे है यौन शोषण
माओवादियों के चंगुल से भाग कर आई महिला कि आपबीती राजेश मिश्रा द्वारा 


शोषण से पूरी तरह मुक्त समाज के सुनहरे सपने दिखाने वाले माओवादी अपने साथ के कार्य कर रहे महिलाओं के साथ यौन उत्पीडन हो रहा है, इस बारे में बीच बीच में समाचार आते रहते हैं । देश के किसी भी हिस्से में किसी महिला माओवादी जब आत्मसमर्पण करती है तो आत्मसमर्पण करने के कारणों के बारे में बताते समय वह निश्चित रुप से बताती है कि पुरुष कैडर उनके साथ यौन शोषण करते हैं ।

राजेश मिश्रा, कोलकाता 
आम तौर पर आत्मसमर्पण करने वाले महिलाएं जो आपबीती बताती हैं, उनमें किसी विशेष व्यक्ति पर आरोप लगाने के बजाए किसी के नाम लिये बिना कैडरों द्वारा यौन शोषण किये जाने की बात कहती हैं । लेकिन हाल ही में ओडिशा में एक महिला माओवादी ने पुरी पुलिस के समक्ष आत्म समर्पण करते समय जो बात कही है उससे लाल गलियारे की अंदरुनी कहानी स्पष्ट हो जाती है । राजलक्ष्मी नाम की इस महिला माओवादी ने मीडिया से बातचीत के दौरान जो खुलासा किया है उससे लोगों की भलाई के लिए काम करने का दावा करने वाली माओवादियों के चेहरे पर नकाब हट गया है । उसने कहा है कि ओडिशा का टाप माओवादी नेता उनका यौन शोषण करता था।

राजलक्ष्मी ने आत्मसमर्पण करने के बाद कहा कि उन्हें बहला फूसला कर माओवादी संगठन में शामिल किया गया था । उन्होंने वहां देखा कि महिला माओवादियों का संगठन में शोषण किया जा रहा है । सैकडों की संख्या में महिला माओवादियों के साथ अनाचार किया जा रहा है ।
उन्होंने बताया कि वहां कई साल तक कार्य किया । इसी बीच उन्होंने एक और माओवादी अनिरुद्ध बेहेरा उर्फ प्रकाश के साथ प्रेम विवाह करना चाहा । लेकिन माओवादियों द्वारा इसका विरोध काफी किया गया और विवाह की अनुमति नहीं दी । विरोध के बावजूद उन्होंने प्रकाश से प्रेम विवाह किया । उनको लगता था कि विवाह के पश्चात उन्हें शारीरिक व मानसिक उत्पीडन नहीं किया जाएगा । लेकिन यह हुआ नहीं । माओवादियों के ओडिशा में सर्वोच्च नेता सव्यसाची उर्फ सुनील ने भी उनका शोषण किया ।
राजलक्ष्मी ने बताया कि उन्हें अपने पति से दूर रखा जाता था । इसके अलावा माओवादियों के नेता सव्यसाची उनके पति को दूसरे क्षेत्र में कार्य करने के लिए भेज देता थे ताकि उनका शोषण किया जा सके । इस कारण वह एक तरह से माओवादियों के बीच उनका दम घुटने लगा था । इस घुटन से बाहर निकलने के लिए उन्होंने आत्मसमर्पण किया ।
राजलक्ष्मी का यह बयान कई अर्थों में महत्वपूर्ण है । आम तौर पर माओवादियों द्वारा बताया जाता है कि वे एक वैचारिक लडाई लड रहे हैं । वैचारिक लडाई के जरिए वे शोषणमुक्त समाज की स्थापना उनका उद्देश्य है । वैचारिक लडाई वही लड सकता है जिसे वैचारिक स्पष्टता हो । जिस व्यक्ति को वैचारिक स्पष्टता न हो, वह क्या वैचारिक लडाई लडेगा । माओवादियों के पास जो फौज है, उनमें अधिकतर अनपढ हैं या फिर पोस्टर भर लिखना ही जानते हैं । इसलिए उनसे किसी प्रकार वैचारिक स्पष्टता की उम्मीद करना ही बेमानी है । लेकिन राजलक्ष्मी ने अन्य महिला माओवादियों की तरह आम कैडरों पर आरोप नहीं लगाया है बल्कि उन्होंने ओडिशा में माओवादियों के सर्वोच्च नेता पर आरोप लगाया है । स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वती की हत्या की जिम्मेदारी लेने वाला सव्यसाची उर्फ सुनील को वैचारिक स्पष्टता नहीं है. यह मानना शायद गलत होगा । क्योंकि सव्यसाची कोई सामान्य माओवादी कार्यकर्ता नहीं है और वह एक प्रमुख पद पर है तथा ओडिशा के माओवादियों के बीच उनका बर्चस्व काफी है । ऐसे में सव्यसाची पंडा द्वारा महिलाओं का यौन शोषण किया जाना माओवादियों के विचारधारा पर ही चोट करता है । माओवादिय़ों के बीच काम करने वाली महिला कैडरों का यौन शोषण होता है यह सर्वविदित था। महिलाओं का शोषण वहां कोई अपवाद नहीं है । लेकिन यह घटना स्पष्ट करता है कि महिलाओं का यौन शोषण करना माओवादी चरित्र का ही हिस्सा है ।
यह कहानी सिर्फ राजलक्ष्मी की नहीं है । लाल संगठन में और जंगलों में कार्य कर रहे अनेक जनजातीय महिलाएं इस तरह के शारीरिक शोषण का शीकार हो रहे हैं । कोई एक राजलक्ष्मी इसके खिलाफ विद्रोह करती है और लोगों को बताती है । शोषण का शिकार हुए अनेक राजलक्ष्मी चुपचाप अपने हाल पर पडे रहने को मजबूर हैं ।

शुरु शुरु में लगता है कि मार्क्सवादी चेतना को लेकर लोग वर्ग संघर्ष और सशस्त्र क्रांति के माध्यम से एक नये तंत्र की स्थापना करना चाहते हैं । लेकिन बाद में धीरे धीरे स्पष्ट होने लगा कि कुछ लोगों का गिरोह भोले भाले लोगों को भडका कर उनकी आड में अपने लिए धन संपत्ति का संग्रह कर रहा है और भौतिक सुविधाओं के पीछे भाग रहा है । । लेकिन अब यह स्पष्ट हो गया है कि धनसंपत्ति के आगे य़ह लोग अनाचार के क्षेत्र में भी प्रवेश कर गये हैं और जनजातीय क्षेत्र की महिलाओं को बंदूक के बल पर शारीरिक शोषण कर रहे हैं । दुर्भाग्य से विनायक सेन, अरुंधती राय व तीस्ता सितलवाडों को अभी भी इन अनाचारियों के इस गिरोह से क्रांति के दर्शन हो रहे हैं । (समन्वय नन्द) 

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