पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव परिणाम
दलगत स्थिति
राजनीतिक दल ——2006——-2011
तृणमूल कांग्रेस——-30———–184
कांग्रेस—————- 24———- 42
माकपा—————175———- 41
राजनीतिक दल ——2006——-2011
तृणमूल कांग्रेस——-30———–184
कांग्रेस—————- 24———- 42
माकपा—————175———- 41
- स्वतंत्र भारत में वामपंथ इन दिनों सबसे कमजोर स्थिति में है।
- तीन राज्यों में प्रभावशाली वामपंथ पश्चिम बंगाल और केरल दोनों जगह से सत्ताच्युत होकर केवल त्रिपुरा में ही सत्तासीन है।
- 13 मई 2011 को आए पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव परिणाम ने तो भारतीय राजनीति की दिशा बदल दी है। राज्य में वामपंथ का लालकिला ढह गया।
- मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य समेत उनके मंत्रिमंडल के अधिकांश मंत्रियों को हार का मुंह देखना पड़ा।
- ‘इतिहास का अंत, उपन्यास का अंत, सभ्यता का अंत, विचारधारा का अंत’ की तर्ज पर यहां तक कहा जा रहा है कि इसे भारत में वामपंथ के अंत के तौर पर देखा जाना चाहिए।
- वामपंथियों ने पश्चिम बंगाल में कृषि सुधार, भूमि सुधार, सांप्रदायिक दंगा मुक्त राज्य के बूते 34 साल तक राज किया। लेकिन उनके शासन में राज्य में उद्योग व्यवस्था चौपट हो गई, कानून व्यवस्था ध्वस्त हो गया, राजनीतिक हिंसा और गुंडागर्दी चरम पर रही।
- तृणमूल कांग्रेस का गठन 1 जनवरी 1998 को हुआ था और माकपा का गठन 1964 में। ममता बनर्जी के नेतृत्व में एक तेरह वर्षीय पार्टी ने माकपा को हरा दिया। सादगी और अपने संघर्षशील तेवर की बदौलत ममता ने यह करिश्मा कर दिखाया।
- सिंगुर और नंदीग्राम में किसानों पर तथाकथित मजदूरों की वामपंथी सरकार ने मजदूरों पर ही जुल्म ढाए यहीं से जनता ने वामपंथ से मुंह फेरना प्रारंभ कर दिया। उसके बाद पंचायत चुनाव, लोकसभा चुनाव और बाद में विधानसभा चुनाव में वामपंथियों की करारी हार हुई।
- क्या यह वामपंथियों की तानाशाही राजनीति के मुकाबले लोकतंत्र की जीत है।
- क्या वास्तव में भारतीय राजनीति में वामपंथ अप्रासंगिक हो गया है।
- क्या वामपंथियों को कार्ल मार्क्स प्रणीत सिद्धांत का ही राग अलापना चाहिए या फिर उसमें समयानुकूल संशोधन करते रहना चाहिए।
- यह वामपंथ की हार है या माकपा की हार।
- भारत में धर्म, जाति जैसे अनेक संवेदनशील मसलों पर वामपंथियों का ढुलमुल रवैया रहा। कुछ दिनों पहले कोच्चि में माकपा की बैठक में नमाज के लिए मध्यांतर की घोषणा कर दी गई। मुसलिम कार्यकर्ताओं को रोजा तोड़ने के लिए पार्टी की तरफ से नाश्ता परोसा गया। वहीं, याद करिए जब सन् 2006 में वरिष्ठ माकपा नेता और पश्चिम बंगाल के खेल व परिवहन मंत्री सुभाष चक्रवर्ती ने बीरभूम जिले के मशहूर तारापीठ मंदिर में पूजा-अर्चना की और मंदिर से बाहर आकर कहा, ‘मैं पहले हिन्दू हूं, फिर ब्राह्मण और तब कम्युनिस्ट’ तब इस घटना के बाद, हिन्दू धर्म के विरुद्ध हमेशा षड्यंत्र रचने वाली भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के अन्दर खलबली मच गई।
- क्या मार्क्सवाद पर नए सिरे से बहस होना चाहिए।
- क्या विचारधारा आधारित राजनीति का समय गया और अब विकास आधारित राजनीति का जमाना आ गया है।
- मुख्यमंत्री ममता बनर्जी नक्सलियों से गठजोड़ करके सत्ता की कुर्सी तक पहुंची हैं, इसके दूरगामी प्रभाव क्या होंगे?
पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव परिणाम एवं भारत में वामपंथी राजनीति पर आपकी क्या टिप्पणी है। कृपया अपने विचार से इस मुद्दे पर बहस को आगे बढ़ाएं।
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