अन्ना और बाबा रामदेव मिलकर छेड़ेंगे सरकार के खिलाफ आंदोलन
अन्ना और बाबा रामदेव |
गौरतलब है कि एक मजबूत लोकपाल बिल को ड्राफ्ट करने के लिए बनी संयुक्त समिति में सरकार और सिविल सोसायटी के नुमाइंदों में सहमति नहीं बन पाई। आखिर दोनों पक्षों ने अपना-अपना ड्राफ्ट एक-दूसरे को सौंप दिया। लेकिन , सिविल सोसायटी के सुझावों को खारिज करते हुए मजबूत लोकपाल बिल को ठंडे बस्ते में डाल दिए जाने से नाराज अन्ना हजारे ने कहा है कि वह चुप नहीं बैठेंगे। उन्होंने 30 जुलाई से सरकार के खिलाफ देशव्यापी यात्रा और 16 अगस्त से अनशन शुरू करने का एलान कर दिया है।
अन्ना हजारे के इस एलान के थोड़ी ही देर बाद बाबा रामदेव ने अपने समर्थन की घोषणा कर दी। पिछले करीब एक सप्ताह से मौन व्रत पर चल रहे बाबा रामदेव ने मंगलवार को मौन तोड़ा। बाबा मीडिया के सामने नहीं आए , लेकिन उन्होंने अपने सहयोगियों से बातचीत की। इसके बाद बाबा के करीबी सहयोगी आचार्य बालकृष्ण ने मीडियाकर्मियों से कहा कि अन्ना हजारे के इस आंदोलन को बाबा रामदेव का पूरा-पूरा समर्थन हासिल है। उन्होंने कहा कि बाबा खुद भी इस आंदोलन में शामिल होंगे। अन्ना के इस आंदोलन में शिरकत करने के लिए बाबा दिल्ली भी जाएंगे। इसके अलावा देश भर में फैले बाबा रामदेव के समर्थक भी बड़ी संख्या में इस आंदोलन में शामिल होंगे।
लोकपाल: इन मुद्दों पर हैं मतभेद
लोकपाल बिल को लेकर सरकार और सिविल सोसायटी के बीच जिन 6 मुद्दों पर मतभेद हैं वे इस प्रकार हैं :-
सरकार का पक्ष
1. सरकार प्रधानमंत्री के पद को लोकपाल के दायरे से बाहर रखना चाहती है। प्रधानमंत्री के खिलाफ शिकायत तो कर सकते हैं, लेकिन जांच उनके पद से हटने के बाद ही हो।
2. सुप्रीम कोर्ट के जज और जॉइंट सेक्रेटरी लेवल के अफसरों को लोकपाल से बाहर रखने के पक्ष में है सरकार।
3. सांसदों का संसद के अंदर किया गया किसी भी तरह का करप्शन लोकपाल के दायरे से बाहर होगा।
4. लोकपाल की नियुक्ति के लिए बनी कमिटी में ज्यादा से ज्यादा पॉलिटिकल लोग होंगे।
5. अगर लोकपाल को हटाने की नौबत आती है, तो सिर्फ सरकार ही सुप्रीम कोर्ट में अपील कर सकती है।
6. सरकार 11 सदस्यीय लोकपाल कमिटी चाहती है, जो देश भर से आने वाली शिकायतों की सुनवाई करेगी।
सिविल सोसायटी का पक्ष
1. प्रधानमंत्री पूरी तरह से लोकपाल के दायरे में हों। जैसे ही कोई शिकायत आए, जांच तुरंत शुरू हो।
2. सभी अफसरों और हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट भी लोकपाल के दायरे में हो।
3. सांसदों को पूरी तरह से लोकपाल के अंदर रखना चाहिए।
4. लोकपाल की नियुक्ति के लिए बनी कमिटी में सिविल सोसायटी वाले ज्यादा से ज्यादा गैर पॉलिटिकल लोगों को रखना चाहते हैं।
5. कोई भी आदमी लोकपाल को हटाने के लिए सुप्रीम कोर्ट जा सकता है।
6. देश भर में जिला स्तर पर लोकपाल कमिटी बनाई जानी चाहिए।
सरकार का पक्ष
1. सरकार प्रधानमंत्री के पद को लोकपाल के दायरे से बाहर रखना चाहती है। प्रधानमंत्री के खिलाफ शिकायत तो कर सकते हैं, लेकिन जांच उनके पद से हटने के बाद ही हो।
2. सुप्रीम कोर्ट के जज और जॉइंट सेक्रेटरी लेवल के अफसरों को लोकपाल से बाहर रखने के पक्ष में है सरकार।
3. सांसदों का संसद के अंदर किया गया किसी भी तरह का करप्शन लोकपाल के दायरे से बाहर होगा।
4. लोकपाल की नियुक्ति के लिए बनी कमिटी में ज्यादा से ज्यादा पॉलिटिकल लोग होंगे।
5. अगर लोकपाल को हटाने की नौबत आती है, तो सिर्फ सरकार ही सुप्रीम कोर्ट में अपील कर सकती है।
6. सरकार 11 सदस्यीय लोकपाल कमिटी चाहती है, जो देश भर से आने वाली शिकायतों की सुनवाई करेगी।
सिविल सोसायटी का पक्ष
1. प्रधानमंत्री पूरी तरह से लोकपाल के दायरे में हों। जैसे ही कोई शिकायत आए, जांच तुरंत शुरू हो।
2. सभी अफसरों और हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट भी लोकपाल के दायरे में हो।
3. सांसदों को पूरी तरह से लोकपाल के अंदर रखना चाहिए।
4. लोकपाल की नियुक्ति के लिए बनी कमिटी में सिविल सोसायटी वाले ज्यादा से ज्यादा गैर पॉलिटिकल लोगों को रखना चाहते हैं।
5. कोई भी आदमी लोकपाल को हटाने के लिए सुप्रीम कोर्ट जा सकता है।
6. देश भर में जिला स्तर पर लोकपाल कमिटी बनाई जानी चाहिए।
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