तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे भाषा के विशेषज्ञ पढ़कर कहें कि ये कलम का छोटा सिपाही ऐसा है तो भीष्म साहनी, प्रेमचंद, महादेवी वर्मा, जयशंकर प्रसाद, सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला', हरिवंश राय बच्चन, फणीश्वर नाथ रेणु आदि कैसे रहे होंगे... गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.

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MAMTA BANERJEE or JAYALALITA

ममता बनर्जी और जयललिता की संघर्ष भरी कहानी

जयललिता जयराम और ममता बनर्जी में कुछ भी ऐसा नहीं है जिसमें समानता खोजी जा सके. दोनों में सिर्फ एक बात सामान्य है कि दोनों का जन्म अति सामान्य परिवार में हुआ था और अति सामान्य घर से निकलकर दोनों ने सत्ता के शीर्ष पर पहुंचने की यात्रा की. अगर अपना घर परिवार पालने के लिए ममता बनर्जी ने अपने पिता के निधन के बाद दूध बेचने तक का काम किया है तो जयललिता ने भी बिना पिता के जीवन जीया है और भूख गरीबी बेरोजगारी की मार झेली है. लेकिन राजनीति में आने के बाद एक अगर रानी की पदवी पर आसीन हो जाती है तो दूसरी शेरनी बन जाती है.

ममता बनर्जी
ममता बनर्जी मुख्यमंत्री
पश्चिम बंगाल 
रेल मंत्री ममता बनर्जी का जन्म 5 जनवरी, 1955 को कोलकाता के एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ। ममता छात्र जीवन से ही राजनीति में दिलचस्पी लेने लगीं थीं। लेकिन 70 के दशक में वह कांग्रेस की सक्रिय कार्यकर्ता बन गई। 1976 में ममता ‘बंगाल महिला कांग्रेस’ की महासचिव चुनी गईं। उसी दौरान जयप्रकाश नारायण की कार के बोनट पर कूदकर वह सुर्खियों में आ गईं। धीरे-धीरे बंगाल की राजनीति में ममता अपनी पैठ जमाती चली गईं। 1984 के चुनाव में जादवपुर सीट से सोमनाथ चटर्जी को हराकर ममता बनर्जी ने सबसे युवा सांसद बनने का इतिहास रचा। इसके बाद 1989 में कांग्रेस विरोधी माहौल में ममता सांसद का चुनाव हार गईं, लेकिन 1991 के आमचुनावों में उन्होंने दक्षिण कलकत्ता सीट से जीत दर्ज की। 1996, 1998, 1999, 2004 और 2009 के चुनावों में ममता ने इस सीट पर लगातार अपना कब्जा बरकरार रखा। 1991 में राव सरकार में ममता मानव संसाधन विकास, खेल और युवा कल्याण तथा महिला एवं बाल विकास मंत्री भी रहीं। अप्रैल 1993 में ममता से मंत्रीपद ले लिया गया था।
ममता बनर्जी अक्सर अपने उग्र और विरोधी स्वभाव के चलते विवादों में रही हैं। ममता ने 1996 में अलिपुर की एक रैली के दौरान अपने गले में काली शॉल से फांसी लगाने की धमकी भी दी थी। वह जुलाई 1996 में सरकार द्वारा पेट्रोल की कीमतें बढ़ाए जाने पर सरकार का हिस्सा रहते हुए, लोकसभा के पटल पर ही विरोध में पालथी मारकर बैठ गई थीं। ममता ने इसी दौरान तत्कालीन समाजवादी पार्टी सांसद अमर सिंह का कॉलर भी पकड़ लिया था। फरवरी 1997 में रेल बजट पेश होने के दौरान ममता ने रेलमंत्री रामविलास पासवान पर अपनी शॉल फेंककर बंगाल की अनदेखी के विरोध में अपने इस्तीफे की घोषणा कर दी थी। बाद में उन्होंने अपना इस्तीफा वापस भी ले लिया था। 11 दिसंबर, 1998 को ममता ने समाजवादी पार्टी के सांसद दरोगा प्रसाद सरोज को महिला आरक्षण बिल का विरोध करने पर कॉलर पकड़कर संसद के बाहर खींच लिया था। कांग्रेस से अलग होकर ममता ने 1 जनवरी, 1998 को अपनी पार्टी आल इंडिया तृणमूल कांग्रेस का गठन किया। 1999 में एनडीए की गठबंधन सरकार में वह रेलमंत्री रहीं। ज्यादा दिनों तक वह सरकार के गठबंधन का हिस्सा नहीं रह सकी। और 2001 में सरकार से अलग हो गई। इसके बाद 2004 में चुनाव से पहले वह फिर एनडीए सरकार में आई और खदान एवं कोयला मंत्री रहीं। 2004 चुनाव में ममता की पार्टी की बुरी तरह से हार का सामना करना पड़ा। 2009 के चुनाव में उनकी पार्टी ने अपना अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया।
ममता ने नंदीग्राम में किसानों की ज़मीन अधिग्रहण करने के सरकारी फ़ैसले के ख़िलाफ़ भूमि उच्छेद प्रतिरोध कमेटी (बीयूपीसी) का भी समर्थन किया। उन्होंने नंदीग्राम में रसायन केंद्र (केमिकल हब) बनाने की राज्य सरकार की योजना का विरोध किया। ममता राजनीति के अलावा चित्रकारी और लेखन में भी रुचि रखती हैं। वे एक अच्छी रसोईया भी हैं। वे धार्मिक भी हैं और हर साल काली पूजा में जरूर हिस्सा लेती हैं।
कुंवारी ममता बनर्जी ने जीवन में बहुत उतार-चढ़ाव देखे हैं। लेकिन उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन में सादगी को बनाए रखा है। ममता गहनों या कपड़ों पर कभी खर्च नहीं करती हैं और बेहद सादा जीवन व्यतीत करती हैं। वह हमेशा सादी सूती साड़ी, कंधे पर एक झोले और रबड़ की चप्पल पहने नजर आती हैं। पार्टी और समर्थकों के बीच में दीदी के नाम से जानी जाती हैं। वे सात बार संसद सदस्य चुनी गईं। साल 2009 के और इस बार के चुनावों में भी ममता का नारा ‘मां, माटी और मानुष’ था। पश्चिम बंगाल में वाम मोर्चे के 34 साल पुराने किले को ढहाने के बाद ममता के मुख्यमंत्री बनना लगभग तय माना जा रहा है।
जयललिता
जयललिता, मुख्यमंत्री- तमिलनाडु
24 फरवरी, 1948 को जयललिता का जन्म कर्नाटक में एक तमिल अय्यर परिवार में हुआ था। जयललिता के बचपन का नाम कोमलवल्ली है। मात्र दो वर्ष की उम्र में जयललिता के पिता उनकी माता को छोड़कर चले गए थे। बचपन से ही जयललिता ने गरीबी, भूख और मजबूरी का जीवन देखा। 2011 में जिस श्रीरंगम सीट से जीतकर वे विधानसभा पहुंची हैं वह श्रीरंगम ही उनका मूल स्थान है। शुरुआती शिक्षा दीक्षा बंगलौर में ही हुई लेकिन बाद में उनकी मां उन्हें लेकर मद्रास चली गयी। उनकी मां संध्या ने पहले तमिल फिल्मों में काम करना शुरू किया। पढ़ने में तेजतर्रार जयललिता को भारत सरकार ने आगे की पढ़ाई के लिए स्कालरशिप देने की पेशकश की लेकिन जयललिता ने तय किया वे फिल्मों में अपना कैरियर बनाएंगी।
तमिलनाडु में रहते हुए भी जयललिता ने अपने फिल्मी कैरियर की शुरूआत कन्नड फिल्म 1964 में चिन्नदा गोम्बे से की. 1965 में उन्होंने पहली तमिल फिल्म जिसके बाद जयललिता ने पहले तमिल सिनेमा में खुद को स्थापित किया और बाद में तमिलनाडु की राजनीति में धाक जमाई।
1981 में जयललिता अन्ना डीएमके पार्टी में शामिल हुई थीं और 1988 में राज्य सभा के लिए नामांकित की गईं। इसी साल वह सांसद भी बन गईं। एम जी रामाचंद्रन के साथ उनकी नजदीकियों ने उन्हें राजनीति में स्थापित होने में मदद की।
एम जी रामाचंद्रन की मौत के बाद उनकी पत्नी की जगह जयललिता को टिकट दिया गया जिसपर काफी बवाल भी मचा, पर जयललिता ने 1989 के चुनावों में जीत हासिल की और विपक्ष की तरफ से जीतने वाली पहली महिला बनीं। 1991 में राजीव गांधी की मौत के बाद जयललिता ने कांग्रेस का दामन थाम लिया। जहां जयललिता को सफलता मिली और वह तमिलनाडु की पहली महिला मुख्यमंत्री बनीं। 1996 में जयललिता को डीएमके से हार झेलनी पड़ी।
जयललिता का राजनीतिक जीवन विवादों से घिरा रहा है। सरकारी धन का निजी सुखों के लिए इस्तेमाल करने और धोखाधड़ी के मामले उनके ख़िलाफ दायर हैं।
जयललिता 1989, 1991  में लोकसभा का चुनाव जीती लेकिन 1996  के चुनाव में उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा था।  जबकी 2001  और 2006  में एक ही जगह से दो बार एमएलए का चुनाव जीती। जयललिता वर्ष 1991 से 1996 और 2002 से 2006  तक दो बार राज्य की मुख्यमंत्री बनी। अब 2011 में तमिलनाडु की तीसरी बार मुख्यमंत्री बनने जा रही हैं.
दोनों में कोई समानता नहीं
राजेश मिश्रा, कोलकाता, पश्चिम बंगाल 
जयललिता और ममता बनर्जी के जीवनशैली में कोई समानता नहीं है. एक ओर जहां जयललिता के वार्डरोड में 10 हजार से अधिक साड़ियों हजारों जोड़ी जूते चप्पल भरे हैं वही ममता बनर्जी बहुत ही सीधी सादी जिंदगी जीती हैं. पोएश गार्डन में रहनेवाली जयललिता का सामान्य से घर में रहनेवाली ममता बनर्जी से कोई तालमेल नहीं हो सकता. जयललिता पर भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहे हैं लेकिन ममता बनर्जी को भ्रष्टाचार से सख्त नफरत है. अटल बिहारी वाजपेयी के शासनकाल में ममता बनर्जी ने रेलमंत्री रहते हुए अपने ही कनिष्ठ को हटाने का अभियान चला दिया था जो बाद में भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष बने और तहलका टीम से एक लाख रूपया लेने के आरोप में राजनीति से हमेशा के लिए विदा हो गये. जयललिता को मंहगी गाड़िया, ज्वेलरी और आलीशान लाइफ स्टाइल पसंद है तो ममता बनर्जी सूती साड़ी और हवाई चप्पल से संतुष्ट रहती हैं. हाल फिलहाल तक उनके पास उनकी एक पुरानी फिएट कार थी जिससे बतौर रेलमंत्री वे रेलभवन आती जाती थीं.

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