तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे भाषा के विशेषज्ञ पढ़कर कहें कि ये कलम का छोटा सिपाही ऐसा है तो भीष्म साहनी, प्रेमचंद, महादेवी वर्मा, जयशंकर प्रसाद, सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला', हरिवंश राय बच्चन, फणीश्वर नाथ रेणु आदि कैसे रहे होंगे... गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.

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मौत के आगोश में लिपटा एक कश जिंदगी का


देवानंद की एक फिल्म बरसों पहले आई थी, जिसमें वे गाते हुए कहते हैं '' हर फिक्र को धुएँ में उड़ाता चला गया। '' वह समय ऐसा था, जब हर फिक्र को धुएँ में उड़ाया जा सकता था, पर अब ऐसी स्थिति नहीं है, अब तो लोग इससे भी आगे बढ़कर न जाने किस-किस तरह के नशे का सेवन करने लगे हैं। हमारे समाज में पुरुषयदि धूम्रपान करे, तो उसे आजकल बुरा नहीं माना जाता, किंतु यदि महिलाओं के होठों पर सुलगती सिगरेट देखें, तो एक बार लगता है कि ये क्या हो रहा है। पर सच यही है कि पूरे विश्व में धूम्रपान से हर साल करीब 50 लाख मौतें होती हैं, उसमें से 8 से 9 लाख लोग भारतीय होते हैं। इसके बाद भी हमारे देश में धूम्रपान करने वाली महिलाओं की संख्या में लगातर वृद्धि हो रही है। वे भी अब हर फिक्र को धुएँ में उड़ा रही हैं।
हमारे देश के महानगरों में चलने वाले कॉल सेंटर के बाहर रात का नजारा देखा है कभी आपने? न देखा हो, तो एक बार जरूर कोशिश करें। वहाँ आपको देखने को मिलेगा, मुँह से धुएँ के छलले निकालती युवतियाँ। ऐसा सभी कॉल सेंटर्स में दिखाई देगा। जिन्होंने यह दृश्य पहले कभी नहीं देखा है, उनके लिए यह अचरच भरा हो सकता है, पर आजकल यह सामान्य बनता जा रहा है कि युवतियाँ लड़खड़ाते कदमों से अस्त-व्यस्त हालत में कुछ न कुछ बड़बड़ाते हुए इधर-उधर भटकती रहती हैं। इधर कुछ वर्षों से यह देखने में आ रहा है कि केवल कॉल सेंटर्स में ही नहीं, बल्कि कार्यालयों में ऊँचा पद सँभालने वाली महिलाओं, क्लब-पार्टी में युवतियों के मुँह से निकलने वाले धुएँ के छलले अब आम होने लगे हैं। यह उनके लिए स्टाइल स्टेटमेंट बन गया है। इसके पीछे होने को तो बहुत से कारण हो सकते हैं, पर सबसे उभरकर आने वाला कारण है काम का दबाव। आपाधापी और प्रतिस्पर्धा के इस युग में आजकल महिलाओं पर भी काम का दबाव बढ़ गया है। घर और ऑफिस दोनों जिम्मेदारी निभाते हुए वह इतनी थक जाती है कि उसे शरीर को ऊर्जावान बनाने के लिए वह न चाहते हुए भी धूम्रपान का सहारा लेने लगी है। महिलाओं द्वारा धूम्रपान कोई आज की बात नहीं है। भारत के सुदूर ग्रामों में आज भी मजदूरी करने वाली महिलाएँ बीड़ी पीते हुए देखी जा सकती हैं। कई स्थानों पर पुरुषों की तरह शारीरिक परिश्रम करते हुए काम के बीच कुछ पल का समय निकालकर बीड़ी का कश ले लेती हैं। कुछ विशेषसम्प्रदाय की महिलाओं में बीड़ी या तम्बाखू का सेवन आम है। इसीलिए तम्बाखू का अधिक उपयोग करने वालों भारत का नम्बर तीसरा है। हर वर्षविश्व को करीब 50 लाख मौतें देने वाला यह पदार्थ न जाने और कितनी जानें लेगा। हालांकि भारत में तम्बाखू का सेवन करने वाली महिलाओं की संख्या अपेक्षाकृत अभी कम है, फिर भी इनकी संख्या लगातार बढ़ रही है, यह विचारणीय है।

महानगर में रहने वाली युवतियाँ तो काम के दबाव में ऐसा कर रही हैं, यह समझ में आता है। इसके अलावा ऐसी युवतियों की संख्या भी बहुत अधिक है, जिन्होंने इसे केवल शौक के तौर पर अपनाया। पहले तो स्कूल-कॉलेज में मित्रों के बीच साथ देने के लिए एक सुट्टा लगा लिया, फिर धीरे-धीरे यह उनकी आदत में शामिल हो गया। उधर पार्टियों में शामिल होने वाली महिलाएँ एक-दूसरे की देखा-देखी में या फिर अपनी मित्र का साथ देने के लिए या फिर गँवार होने के आरोप से बचने के लिए केवल ''ट्राय'' के लिए अपने होठों के बीच सिगरेट रखती हैं, धीरे-धीरे यह नशा छाने लगता है। अपनी पसंदीदा अभिनेत्रियों को टीवी या फिल्म में जब युवतियाँ देखती हैं कि वे भी तनाव के क्षणों में किस तरह से सिगरेट के कश लगाती हैं, तब हम भी क्यों न तनाव में ऐसा करें? वे शायद यह समझ नहीं पाती कि उनकी पसंदीदा अभिनेत्री को यह सब करने के लिए लाखों रुपए मिलते हैं। ऐसा कहा जाता है कि 70 के दशक में जो महिलाएँ पार्टी में धूम्रपान नहीं करती थीं, उन्हें ''आऊट डेटेड '' माना जाता था। आज तो हालात और भी अधिक बुरे हैं।

इसी तरह धूम्रपान का शिकार बनी वनिता का कहना था-जब मैं कॉलेज में थी, तब मित्रों के कहने से मैंने पहली बार सिगरेट को हाथ लगाया, फिर इस डर से कि कहीं मैं इन मित्रों को न खो दूँ या यह सब मुझे अपने से दूर न कर दें, इसलिए मैंने इस व्यसन को जारी रखा। धीरे-धीरे यह मेरी आदत में शामिल हो गया। अब तक जब भी मौका मिलता, मैं सिगरेट सुलगाती और उसके कश लेने लगती। एक बार रात में मेरी खाँसी बढ़ गई, माता-पिता घबरा गए, वे मुझे डॉक्टर के पास ले गए, मैं समझ गई कि अब मेरा झूठ यहाँ नहीं चलेगा। तब मैंने डॉक्टर को एकांत में हकीकत बता दी और वादा किया कि मैं इस व्यसन को छोड़ दूँगी, पर मेरे माता-पिता को इस बारे में कुछ न बताया जाए। डॉक्टर मेरी बात सुनकर घबरा गए, पर उन्होंने स्थिति को सँभाला और मुझे इस व्यसन से मुक्त करने का फैसला किया। मुझे निकोटीन दिया जाता था, खास प्रकार के माउथ वॉश से कुल्ला करने का कहा जाता, मेरे लिए वे दिन बहुत ही यातनापूर्ण थे, इस व्यसन से मुक्ति के लिए मुझे मानसिक रूप से भी तैयार होना पड़ा। छह महीनों के इलाज से यह लाभ हुआ कि धूम्रपान से मेरे फेफड़ों को हुए नुकसान की भरपाई हो गई। उसके बाद तो मैंने धूम्रपान से तौबा ही कर ली। वनिता जैसी किस्मत सबकी नहीं होती, इसमें वनिता की इच्छा शक्ति ने कमाल किया। वर्ल्ड हेल्थ आर्गनाइजेशन (WHO) ने एक सर्वेक्षण में बताया कि धूम्रपान या तम्बाखू का सेवन छोड़ने का संकल्प कई लोग करते हैं, पर 71 प्रतिशत में से मात्र 3 प्रतिशत लोग ही इसमें सफल हो पाते हैं। बाकी लोग कुछ समय बाद फिर वही नशा करने लगते हैं। उनकी देखा-देखी में उनकी संतानों में भी यह प्रवृति देखने को मिलती है। जिन परिवारों में महिलाएँ धूम्रपान करती हैं, उन परिवारों में बच्चों को ऐसा कुछ अनोखा नहीं लगता। मुम्बई में हुए एक सर्वेक्षण्ा में यह पाया गया कि 33.4 प्रतिशत गर्भवती महिलाएँ, जो किसी न किसी प्रकार के तम्बाखू का सेवन करती हैं, ऐसी महिलाओं का गर्भपात, अधूरे महीने ही प्रसूति, अविकसित बच्चे को जन्म देना आदि घटनाएँ होती हैं। पति का साथ देने के लिए धूम्रपान, मद्यपान या फिर तम्बाखू का सेवन गर्भावस्था के दौरान भी करने वाली एक महिला ने बताया कि इस दौरान में काफी तकलीफों से गुजरना पड़ा। बच्चे के जन्म के बाद उसकी अच्छी परवरिश के लिए मैंने तम्बाखू का सेवन छोड़ दिया, पर इसे लम्ब समय तक अपने से दूर नहीं कर पाई, तक कई लोगों ने समझाया कि यह सेवन तुम्हारे बच्चे के लिए खतरनाक है, मैं इसे समझती, तब तक काफी देर हो चुकी थी, मेरा बच्चा बहुत ही छोटी उम्र में ही धूम्रपान की लत लग गई है।
तम्बाखू से होने वाले नुकसान से शिक्षित वर्ग बहुत अच्छी तरह से वाकिफ होता है, पर विडम्बना यह है कि महानगर की महिलाओं में धूम्रपान का शौक बुरी तरह से हावी हो रहा है। एक शोध के अनुसार एक सिगरेट में ''फिनोल'', सीसा, टार और केडियम जैसे 4800 खतरनाक केमिकल होते हैं, दूसरी ओर उसके धुएँ में 4000 केमिकल और 500 जहरीली गैसें होती हैं। यह जानते हुए भी इंसान फिर इसी लत का शिकार होता रहता है। आश्चर्य की बात यह है कि पुरुषों की तुलना में महिलाओं को तम्बाखू का व्यसन छोड़ने में अधिक मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। हमारे देश में 49 ये 59 वर्षतक महिलाओं में यह व्यसन सामान्य है, किंतु उसकी शुरुआत बाल्यकाल में ही हो जाती है। विद्यार्थियों में यह आदत दस वर्षकी उम्र या उसके पहले ही हो जाती है। भारत में तम्बाखू का सेवन उत्तर-पूर्व में होता है। परिवार में यदि बड़े लोग खुलेआम धूम्रपान करते हैं, तो उस परिवार के बच्चे भी इसे अपनाने में देर नहीं करते। बचपन की यह आदत युवावस्था में काम के दबाब को देखते हुए बढ़ जाती है। '' टोबेको कंट्रोल फाउंडेशन ऑफ इंडिया'' के प्रेसीडेंट डॉ. सजीला मैनी के अनुसार यदि भारतीय युवतियाँ 15 से 22 वर्षके बीच तम्बाखू का सेवन न करे, तो आमतौर पर इस व्यसन के शिकार की संभावना बहुत ही कम हो जाती है।
इसके बाद भी ''पीने वालों को पीने का बहाना चाहिए'' यह उक्ति उन लोगों के लिए सही बैठती है, जो रोज ही इस लत को छोड़ने का संकल्प लेते हैं और वह चीज सामने आते ही संकल्प भूल जाते हैं। इसलिए यह दावे के साथ नहीं कहा जा सकता कि उसने धूम्रपान छोड़ दिया। इसके लिए तो जरूरी यह है कि क्या वास्तव में धूम्रपान ने उसे छोड दिया है?

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