तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे भाषा के विशेषज्ञ पढ़कर कहें कि ये कलम का छोटा सिपाही ऐसा है तो भीष्म साहनी, प्रेमचंद, महादेवी वर्मा, जयशंकर प्रसाद, सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला', हरिवंश राय बच्चन, फणीश्वर नाथ रेणु आदि कैसे रहे होंगे... गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.

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Mahendra Singh Dhoni's Fanda

माहि को झारखंडी नहीं
उत्तराखंडी कहें जनाब
भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान महेंद्र सिंह धोनी अपनी पत्नी साक्षी के साथ 
दूर झारखंड के रांची जा कर बसे पान सिंह धोनी ने देहरादून में अपने बेटे और क्रिकेट जगत के देदीप्यमान नक्षत्र महेंद्र का विवाह देहरादून की साक्षी रावत के साथ करा कर पूरे 35 साल बाद अपनी जन्मभूमि से एक बार फिर टूटे तार जोड़ने की कोशिश की है.

उत्तराखंड के धोनी के प्रशंसक उनके यहां से शादी कर लेने में ही संतोष जता रहे हैं. यूं धोनी या उनके पिता ने उत्तराखंड से जाने और विश्व ख्याति अर्जित करने के बाद उत्तराखंड की उस ज़मीन को शायद ही याद किया हो जहां उनके पुरखे रहते आए थे. अल्मोड़ा जिले के लमगड़ा ब्लॉक के ल्वाली विनोला गांव में जन्में माही के पिता पान सिंह धोनी उत्तराखंड के लाखों अन्य पलायन कर चुके युवाओं की तरह 1975 में गांव छोड़ कर रोज़गार की तलाश में झारखंड के रांची गए थे.

दो भाइयों में एक पान सिंह मात्र पांचवी पास थे और गांव छोड़ कर जाने से पहले वो अपने गांव के पास धागानौला में एक राशन की दूकान में काम करते थे.पान सिंह धोनी को रांची में परिचितों के माध्यम से जलकल विभाग में फोर्थ क्लास की नौकरी मिल गई. एक क्लर्क को भी बार बार सलाम ठोंकने वाले पान सिंह को क्या पता था कि उसके घर में पैदा हुए बालक माही के कारण एक दिन दुनिया उसे सलाम ठोकेगी और पाई पाई जोड़ने वाले के कदमों में एक दिन बेशुमार दौलत का अंबार लगेगा.

पान सिंह ज़ाहिर है रांची का ये ऋण कभी नहीं चुका सकते. और रांची भी ज़ाहिर है पान सिंह और उनके बेटे पर हमेशा नाज़ करता रह सकता है. धोनी अब झारखंड के लाडले हैं और उत्तराखंड के लोगों को मलाल है कि धोनी अपने पुरखों की ज़मीन को भूल गए. अब धोनी ने देहरादून में शादी की और उनकी पत्नी भी उत्तराखंड की मूल निवासी है, तो यहां के लोगों में ख़ुशी राहत और गर्व की मिली जुली भावना देखी जा सकती है.

विनोला ग्राम पंचायत के ल्वाली गांव में जन्मे पान सिंह के बड़े भाई घनपत सिंहदसवीं तक पढ़े लिखे थे इसलिए उन्हें प्राइमेरी स्कूल में शिक्षक के तौर पर नौकरी मिल गई. घनपत भी अपनी पत्नी के साथ माही की शादी में शामिल होने के लिए देहरादून पहुंचे थे. ल्वाली गांव के पूर्व पोस्ट मास्टर धर्मसिंह धोनी का कहना है कि महेंद्र केवल एक बार अपने गांव अपने जनेउ संस्कार के लिए आया था.

माही के उन दिनों की फोटो आज भी उनके चचेरे भाई बहन गर्व से लोगों को दिखाते हैं. उनके पिता का शुरू में अपने गांव आना जाना रहा मगर धीरे धीरे गांव की यादें धुंधली होते जाने के साथ ही उन्होंने भी गांव आना कम कर दिया.और जैसे ही महेंद्र का भारतीय क्रिकेट के आकाश में उदय हुआ तो पान सिंह शायद अपने उस गांव को भूल गए.

धर्मसिंह का कहना है कि ल्वाली गांव के लोगों को माही पर गर्व तो है मगर मलाल भी है कि उन्होंने कभी ल्वाली तो दूर रहा दूर, उत्तराखंड से भी अपना रिश्ता ज़ाहिर नहीं किया. माही की शादी पर उनके पैतृक गांव में सन्नाटा ही था. अलबत्ता कुछ टीवी कैमरे मिठाई के डिब्बों के बीच एक ख़ुशी दिखाते रहे लेकिन कोई भी समझ सकता था कि वो कितनी वास्तविक है. और उसमें क्या कसक है.

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