मास्टर अजीज
हिंदू-मुसलिम एकता के प्रतीक, भोजपुरी भाषा एवं साहित्य के रसखान मास्टर अजीज अपने गृह जिले में ही उपेक्षित हैं। वे महाकवि रसखान के समान ही हिंदू एवं मुसलमान को एक इंसान मानते थे। उनकी दृष्टि में राम और रहिम, कृष्ण और करीम में कोई अंतर नहीं है। हम सभी एक ही ईश्वर के संतान हैं। महाकवि मास्टर अजीज की भावना थी-
'है एक ही सबके पिता, अल्लाह ही भगवान है
नाम ही का भेद है, वह राम ही रहमान है'
मास्टर अजीज का जन्म सारण जिले के मढ़ौरा प्रखंड के कर्णपुरा गांव में 5 मार्च 1910 ई. को हुआ था। उनके पिता का नाम रसूलबक्स था। वे कलकत्ता के टीरागढ़ के नामी ठेकेदार थे। इनकी प्रारंभिक शिक्षा कलकत्ता में बंगला, उर्दू और फारसी भाषा में हुई थी। उन्होंने बचपन में ही कुरान का अध्ययन कर अपने इस्लाम धर्म का ज्ञान प्राप्त कर लिया था। सन 1925 ई. को अपने पैतृक ग्राम कर्णपुरा में आकर रहने लगे। उनके गांव में हिंदुओं की संख्या अधिक थी। परिणामत: उन्हें हिंदू धर्म से भावनात्मक संबंधित दिनोंदिन प्रगाढ़ होने लगा। वे घर पर ही स्वाध्याय के बल पर हिंदी और संस्कृत आदि भाषाओं का ज्ञान प्राप्त किया। उसके बाद उन्होंने हिंदुओं के धार्मिक ग्रंथ रामायण, महाभारत, गीता, वेद, पुराण आदि का सम्यक अध्ययन किया। जिसके फलस्वरूप उनके हृदय में राम-कृष्ण, शिव-पार्वती आदि हिंदू देवी-देवताओं के प्रति श्रद्धा एवं प्रेम का भाव उत्पन्न हो गया। काव्य सृजन की भावना उनके हृदय में प्रवाहित होने लगी-
'वियोगी होगा वह पहला कवि, आह से उपजी होगी गान
निकल कर चुपचाप आंखों से बही होगी कविता अनजान'
तत्पश्चात उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन भोजपुरी भाषा एवं साहित्य सृजन में समर्पित कर दिया।
वे भोजपुरी के शेक्सपियर भिखारी ठाकुर एवं भोजपुरी-पूर्वी के पुरोधा पं. महेन्द्र मिश्र के समकालीन थे। इसी कारण उन्होंने उन दोनों से प्रेरित होकर अपने साहित्य के प्रचार-प्रसार के लिए कीर्तन मंडली का निर्माण किया। उस मंडली में वे व्यास की भूमिका में अपनी रचित कविताओं, गीतों एवं भजनों को गाकर अपने काव्य साहित्य का प्रचार-प्रसार किया। इनके कीर्तन-भजन का श्रोताओं पर अच्छा प्रभाव पड़ा। सर्वत्र उनकी तूती बोलने लगी।
सारण जिले से लेकर कलकत्ता तक इन्होंने भोजपुरी के झंडे बुलंदी के साथ फहराकर अपने नाम को अमर कर दिया। महाकवि मास्टर अजीज 63 वर्ष की आयु में 5 मई 1973 ई. को इस दुनिया को छोड़कर चले गए।
मास्टर अजीज के काव्य में भक्ति रस की प्रधानता है। उनके काव्य में निर्गुण भक्ति एवं सगुण भक्ति का सम्मिश्रण है। उनके काव्य पर निर्गुण ज्ञानाश्रयी शाखा के प्रवर्तक संत कबीर, निर्गुण प्रेमाश्रयी शाखा के प्रवर्तक मलिक मुहम्मद जायसी, रामकाव्य परंपरा के महाकवि तुलसीदास एवं कृष्ण काव्य परंपरा के महाकवि सूरदास एवं रसखान आदि कवियों का व्यापक प्रभाव पड़ा है।
उदाहरण के रूप में मास्टर अजीज की निम्नांकित पंक्तियों का अवलोकन किया जा सकता है-
'रे मन मूरख निपट अनारी
खोजत फिरे काबा काशी, लेके धरम लुकारी
मन मंदिर में राम बसत है, काहे दिहल बिसारी
रे मन मूरख निपट अनारी।'
मास्टर अजीज की काव्यगत विशेषताओं के बारे में डा. प्रभुनाथ सिंह, डा. तैयब हुसैन पीड़ित, भरत भूषण, चन्द्रशेखर सिंह, नागेन्द्र प्रसाद सिंह, प्रो. ब्रजकिशोर, महामाया प्रसाद विनोद, राम लोचन पंडित, वैद्यनाथ सिंह आदि विद्वानों ने निबंध लिखे हैं जो प्रशंसनीय है। परंतु अब भी मास्टर अजीज की करीब 2 हजार कविताएं, गीत बिखरे पड़े हैं। हां, उनकी कुछ कविताओं का प्रकाशन नागेन्द्र प्रसाद सिंह एवं एम. जब्बार आलम के सम्पादन में 'मास्टर अजीज: व्यक्तित्व एवं कृतित्व' नामक पुस्तक के माध्यम से किया गया है। परंतु जो सम्मान उन्हें अपने गृह जिले में मिलना चाहिए, वह नहीं मिल रहा है। उनकी संपूर्ण रचनाओं के प्रकाशन की दिशा में कोई सक्रियता नहीं दिखाई जा रही है।
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