तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे भाषा के विशेषज्ञ पढ़कर कहें कि ये कलम का छोटा सिपाही ऐसा है तो भीष्म साहनी, प्रेमचंद, महादेवी वर्मा, जयशंकर प्रसाद, सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला', हरिवंश राय बच्चन, फणीश्वर नाथ रेणु आदि कैसे रहे होंगे... गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.

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Aadhaar Cards work now hang in the balance?

आधार कार्ड का काम अब
अधर में लटका...?

वित्तीय मामलों पर यशवंत सिन्हा की अगुवाई वाली संसदीय समिति ने नैशनल आइडेंटिफिकेशन अथॉरिटी ऑफ इंडिया बिल को उसके मौजूदा स्वरूप में ' अस्वीकार्य ' करार दिया है। समिति ने सवाल उठाया है कि नंदन नीलकेणी के नेतृत्व में यूआईडी प्रॉजेक्ट संसद से मंजूरी लिए बिना लाखों लोगों की निजी जानकारी कैसे इकट्ठा कर रहा है। अगर एनआईए बिल पास हुआ होता तो यूआईडी प्रॉजेक्ट को कानूनी आधार मिल गया होता, लेकिन कमिटी के मुताबिक समस्या यह है कि सरकार ने क्यों यूआईडी को बिनी किसी कानूनी आधार के तकरीबन तीन साल तक काम करने दिया। इस बीच उसने नाम, पते, फिंगरप्रिंट और आइरिस स्कैन का बड़ा डाटाबेस तैयार कर लिया है।

दूसरी समस्याएं भी हैं। यूआईडी प्रॉजेक्ट के तहत जारी किए गए आधार कार्ड गैरकानूनी प्रवासियों को भी मिल सकता है, जिससे उन्हें सामाजिक क्षेत्र से जुड़ी योजनाओं का फायदा उठाने का मौका मिलेगा और ऐसे में उन्हें यहां की नागरिकता हासिल करने का रास्ता मिल सकता है। संसदीय समिति की तरफ से जारी रिपोर्ट में बायोमीट्रिक डाटा के इस्तेमाल से जुड़ी तकनीकी चिंताएं उठाई हैं। इनमें इकट्ठा किए गए डाटा की सुरक्षा और गोपनीयता से जुड़ी बातें शामिल हैं।

दूसरे सरकारी मंत्रालय भी यूआईडी को लेकर उत्साहहीन हो गए हैं, खासतौर पर गृह मंत्रालय और वित्त मंत्रालय। गृह मंत्रालय तो नैशनल पॉपुलेशन रजिस्टर (एनपीआर) प्रॉजेक्ट के तहत नागरिकों की अपनी फेहरिस्त तैयार कर रहा है। यहां तक कि योजना आयोग ने भी सांसदों से कहा है कि यह प्रोजेक्ट अपने मूल दायरे से बाहर चला गया है। ईटी ने नीलेकणी को इस स्टोरी पर प्रतिक्रिया के लिए ई-मेल किया था, लेकिन उनकी प्रतिक्रिया नहीं आई।

मौजूदा स्वरूप में बिल को मंजूर न किए जाने लायक करार देने के बाद कमिटी ने कहा, ' यूआईडीएआई के तहत पहले से जुटाया गया ब्योरा नैशनल पॉपुलेशन रजिस्टर (एनपीआर) को ट्रांसफर किया जा सकता है, अगर ऐसा सरकार चाहे तो। ' यह बेतुका है, क्योंकि एनपीआर और यूआईडी काफी कुछ एक जैसा काम कर रहे हैं।

एनपीआर कारगिल युद्ध के बाद सामने आया, जब बीजेपी सरकार के मंत्रिमंडल ने देश के सभी नागरिकों और प्रवासी भारतीयों से जुड़ी जानकारी इकट्ठा करने और अलग पहचान पत्र जारी करने का फैसला किया। नागरिकता कानून में संशोधन करने के जरिए साल 2004 में एनपीआर प्रॉजेक्ट को कानूनी आधार दिया गया। इसके साथ नए नियम में कहा गया कि एक नया संस्थागत ढांचा बनाया जाएगा, जिसके तहत आंकड़े इकट्ठा किए जाएंगे।

साल 2007-08 से 2010-11 के दौरान इस प्रॉजेक्ट पर कुल 3,474 करोड़ रुपए खर्च किए गए। साल 2011-12 में इसके लिए 4,113 करोड़ रुपए का बजट आवंटित किया गया। जनगणना के दौरान ही इस प्रॉजेक्ट के लिए नाम और पता जैसे ब्योरे लिए गए। अब सूचना प्रौद्योगिकी विभाग (डीआईटी) की अगुवाई में बायोमीट्रिक डाटा जुटाने का काम अलग से शुरू किया जाएगा।

लेकिन अब एनपीआर प्रॉजेक्ट के कानूनी दर्जे को लेकर कमेटी ने सवाल उठाया है। समिति ने कहा है कि बायोमीट्रिक डाटा इकट्ठा करना और उसे लोगों की निजी जानकारियों से जोड़ना प्रॉजेक्ट के लिए किए गए कानूनी संशोधनों और बनाए गए नियमों के दायरे से बाहर की बात है और इस बाबत संसद में व्यापक चर्चा की जानी चाहिए। एनपीआर प्रॉजेक्ट का नेतृत्व कर रहे रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया सी चंद्रमौलि ने इस बारे में कहा, ' ने अभी तक रिपोर्ट नहीं देखी है। मैं इस बारे में कुछ नहीं कह सकता। '

हालांकि समिति ने भी इस बारे में ब्योरा नहीं दिया है कि क्यों और कैसे बायोमीट्रिक डाटा इकट्ठा करने की बात एनपीआर प्रॉजेक्ट के लिए बनाए गए विधान के दायरे से बाहर जाती है। पॉपुलेशन रजिस्टर के तहत बनाए गए नागरिक नियम इकट्ठा की गई जानकारियों की सूची तैयार करने की इजाजत देते हैं। हालांकि अहम सवाल यह है कि 'जानकारी' की परिभाषा को बायोमीट्रिक डाटा इकट्ठा करने में भी लागू किया जा सकता है या नहीं।

असमानता से ज्यादा समानता
गैरकानूनी प्रवासियों समेत सभी लोगों को आधार कार्ड जारी करने को लेकर समिति ने चिंता जताई है। दिलचस्प बात है कि एनपीआर भी कम से कम शुरुआत में, सिर्फ नागरिकों की पहचान करने तक खुद को सीमित नहीं करता। एनपीआर किसी इलाके के सभी ' आम लोगों ' का सर्वे करेगा- जो पिछले एक साल में कम से कम छह महीनों से वहां रह रहे हों। ऐसे लोगों को एनपीआर के तहत पहचान पत्र जारी किए जाएंगे। इसके बाद इन नागरिकों पर दोबारा सर्वे होगा और अंतिम सिटिजन रजिस्टर तैयार किया जाएगा। नागरिक नियमों का सही मकसद भारतीय नागरिकों का नैशनल रजिस्टर तैयार करना है और एनपीआर इसका जरिया है। नियमों के तहत सभी नागरिकों से जुड़ी 12 अलग-अलग तरह की जानकारियां फाइनल सिटिजनशिप रजिस्टर में देनी है। बायोमीट्रिक डाटा का इसमें जिक्र नहीं किया गया है। इकट्ठा किए गए बायोमीट्रिक डाटा के साथ क्या होना है, इसको लेकर तस्वीर साफ नहीं है।

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