तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे भाषा के विशेषज्ञ पढ़कर कहें कि ये कलम का छोटा सिपाही ऐसा है तो भीष्म साहनी, प्रेमचंद, महादेवी वर्मा, जयशंकर प्रसाद, सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला', हरिवंश राय बच्चन, फणीश्वर नाथ रेणु आदि कैसे रहे होंगे... गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.

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Tribal Women dance Two video!

आदिवासी महिलाओं को नचाने के दो और वीडियो!
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अंडमान के आदिवासियों के शोषण का मामला अभी ठंडा भी नहीं पड़ा कि ऐसे दो और वीडियो सामने आ गए हैं। इन वीडियो में आदिवासियों को विदेशी सैलानियों के सामने नचाने में स्‍थानीय पुलिसवालों की कथित तौर पर मिलीभगत सामने आ गई है।वीडियो को देखकर कहा जा सकता है कि कथित तौर पुलिस ने उन विदेशी सैलानियों की मदद की जो कुछ पैसों और खाना का लालच देकर आदिवासियों को अर्धनग्‍न अवस्‍था में नाचने पर मजबूर करते हैं। वीडियो में एक पुलिसवाला दिखाई देता है जो नाच रही आदिवासी महिलाओं के सामने आराम से बैठा है। ब्रिटिश अखबार ‘ऑब्‍जर्वर’ ने दावा किया है कि उसके पास ऐसे दो नए वीडियो हैं। अखबार ने जब इससे पहले (रिलेटेड लिंक पर क्लिक करें) खबर दी थी तो काफी हो हल्‍ला मचा था। लेकिन अब माना जा रहा है कि ये वीडियो इस मामले में कथित तौर पर सुरक्षाकर्मियों के लिप्त होने के ताज़ा सबूत हैं। अखबार के एक पत्रकार को हासिल हुआ पहला वीडियो तीन मिनट 19 सेकेंड का है और एक मोबाइल फोन के जरिए लिया गया है।इस वीडियो में जारवा युवतियों को कथित तौर पर पुलिस अधिकारियों के सामने नाचते हुए दिखाया गया है। इस वीडियो में सुरक्षाकर्मियों की कुछ टिप्पणियां भी स्‍क्रीन पर दिखती हैं। पहली बार वीडियो जारी होने के समय अंडमान निकोबार प्रशासन ने दावा किया था वीडियो में जिस व्यक्ति ने जारवा महिलाओं को डांस करने के लिए कहा है, वह पुलिस वाला नहीं है।अंडमान-निकोबार प्रशासन ने दोषियों के खिलाफ कड़ा कदम उठाने की बात कहने की बजाय उन टीवी चैनलों को नोटिस देने का फैसला किया, जिन्होंने आदिवासी महिलाओं को डांस करते हुए दिखाया। प्रशासन ने उस वक्‍त दावा किया था वीडियो में जिस व्यक्ति ने जरवा महिलाओं को डांस करने के लिए कहा है, वह पुलिस वाला नहीं है।
लालच देकर यूं कराया जाता है इंसानियत का नंगा नाच!


उन्हें देखने रोज हजारों पर्यटक पहुंचते हैं। उन्हें नाचने को कहा जाता है। उन्हें उनके पहनावे के लिए चिढ़ाया जाता है। उनके ऊपर खाने-पीने की चीजें फेंकी जाती हैं।...पर ये बेहद शर्मनाक है। क्योंकि वे जानवर नहीं हैं। हमारी-आपकी तरह ही वे भी इंसान हैं। ये दर्द है अंडमान द्वीप के जंगलों में रहने वाली आदिवासी जनजाति ‘जरावा’ के लोगों का।

वे पर्यटकों की भाषा नहीं समझते। और न चाहते हुए भी हर दिन तमाशा बने रहते हैं। टूर ऑपरेटर मात्र करीब 25,000 रुपए प्रति वाहन की दर पर इस जनजाति को किसी चिड़ियाघर की तरह दिखाने ले जाते हैं। इस गैरकानूनी कमाई का एक हिस्सा स्थानीय पुलिस को भी जाता है।

कानून की उड़ रही धज्जियां

सरकारी आंकड़ों में जरावा जनजाति के लोगों की संख्या करीब 403 है। सरकार ने इनसे दूर रहने के सख्त नियम बना रखे हैं। इनके क्षेत्र में सरकार ने इनसे दूर रहने व खाने-पीने की चीजें नहीं देने जैसे बोर्ड भी लगा रखे हैं। लेकिन टूर ऑपरेटरों और पुलिस की मिलीभगत से इन्हें जानवरों की तरह दिखाने का खेल खुलेआम चल रहा है और कानून की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं।

ये है जरावा जनजाति

: 1990 में ये पहली बार बाहरी दुनिया के संपर्क में आए।
: ये जंगलों में रहने वाली आदिवासी प्रजाति है।
: ये अंडमान द्वीप के हिंद महासागर से लगते उत्तरी छोर पर रहते हैं।
: पुरुष व महिलाएं सिर्फ निचले धड़ पर पत्ते या कपड़े के छोटे टुकड़े पहनते हैं।



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