टीम इंडिया विश्व कप क्रिकेट २०११ जितने के बाद हर्षित मुद्रा में... |
राजेश मिश्रा जगकल्याण पत्रिका के वार्षिक प्रोग्राम मे पत्रिका के सम्पादक संजय अग्रवाल के साथ. |
२ अप्रैल २०११ का वह क्षण, धोनी के हेलिकोप्टर शौट द्वारा विजयी छक्का, जीत के बाद पुरे मैदान में सचिन को कंधे पर घुमाना, क्रिकेट विश्व कप २०११ का महेन्द्र सिंह धोनी के हाथों मे सौपना... ये सब यादकर लम्हें है... जिसे करोड़ों लोग अपनी नग्न आँखों से मैदान ऑर टेलिविजन पर देख रहे थे... लेकिन आपको यह जानकार सदमा लगेगा कि आइसीसी ने किस प्रकार सबको बेवकुफ बनाया....
: राजेश मिश्रा
क्या आइसीसी उस क्षण को वापस ला सकता है... इतने लोगों को फिर से जुटाकर असली कप धोनी को दे सकता है....
जिस आईसीसी के अध्यक्ष को पत्रकारों को सम्मान देने की तमीज ना हो उसे हिन्दुस्तानकेविश्व चैंपियन्स को गुमराह करने का अधिकार किसने दिया। हिन्दुस्तान के विश्व चैंपियन्स देखते रह गए और कस्टम के कर्मचारियों ने अपनी ईमानदारी तले विश्वकप ट्राफी को कुचल दिए।
आईसीसी ने जो कुछ किया है उसे सुनेंगे तो खून खौल उठेगा। 28 साल के मेहनत को मटियामेट करके रख दिया है।ऐसी घटनाएं परंपराओं का हिस्सा नहीं होती और ना ही योजनाएं बनायी जाती हैं।यू हीं नहीं कोई विश्व विजेता बन जाता है।इसके लिए भरोसे की भट्ठी में तपना पड़ता है। जज्बातों को जरूरत की परखनली में उबलते हुए दिखाना पड़ता है।
भावनाओं के शेयर बाजार में भविष्य को दांव पर लगाना पड़ता है।तमन्नाओं की तीर निशाने पर चलानी पड़ती है।जुनून की हद से गुजरना पड़ता है।क्या कुछ नहीं किया हमारे दिलेर जांबाजों ने।पहले मगरूर कंगारूओ की टीम को पहले चोट किया फिर पाकिस्तान की धज्जियां उड़ायी।तब जाकर वानखेड़ें मैदान में श्रीलंका को रौंदने के लिए भारतीय टीम उतरी थी।
एक-एक गेंद के आगे देश का गुमान चल रहा था। एक एक शॉट पर भुजाएं फड़क रही थी। दिल के डैने बाज की तरह फड़फड़ाने लगे थे।उम्मीदों का उन्माद कहिए या उन्माद की उम्मीद।सांसे भारत में भी थमी थी और सांसे श्रीलंका में भी थमीं थी।एक एक पल चट्टान की तरह खिसक रही थी।वाकई ये मैच जज्बातों का था..ये मैच जीवट का था... मैच हुनर का था.. ये मैच हौंसले का था।
पलकें भी झपकने से इनकार कर दिया।लेकिन जैसे ही धोनी ने धमाके दार छक्का मारा।जज्बात दिल के दरवाजे तोड़ कर बाहर निकल पड़े।माफ किजिएगा हम ज्यादा जज्बाती हो गए...लेकिन क्या करे खुशी को संभाल नहीं पा रहे।मैच खत्म होते ही 11 खलनायक बन चुके थे और 11विजयरथ पर सवार हो चुके थे।कभी ना खत्म होने वाली जश्न से देश सराबोर हो गया।जिस सचिन ने देश को 21 साल कंधे पर उठाया था उसी महानायक को पूरे खिलाड़ियों ने कंधे पर उठा लिया।
इतिहास रोज नहीं बनते।लेकिन ये भी सच है कि इतिहास बदलता है। 2 अप्रैल का दिन दोनों मुल्कों के लिए बाकी 364 दिनों की तरह नहीं रहने वाली।इस दिन हमारे महानायकों ने निर्वासन से आगमन और आगमनसे स्थापन तक का सफर पूरा करके शून्य से संभावनों का नया क्षितिज खोला है।आईसीसी अध्यक्ष माननीय शरद पवार की संदिग्ध मुस्कान ने भी कई राज खोले है।मैदान में मुस्कुरा तो ऐसे रहे थे जैसे ये ही जीतकर आए हों। महंगाई से इतर कोई पूछता नहीं लिहाजा अपनी पूरी ताकत ऐसे लोगों को नीचा दिखाने में झोंक देते है जिसे उठाने में उनका कोई श्रेय ना हो।
कहीं आते जाते भी नहीं....कैसे जाएंगे..इज्जत जो कम हो जाएगी। श्रीलंका से कप आ रहा था लेकिन मुम्बई के कस्टम विभाग के ईमानदार खिलाड़ियों ने कप को पहले ही मार लिया। सचिन,गंभीर,धोनी की सेना देखती रह गयी।45 करोड़ की टैक्स माफी किया था।इस माफी पर क्या मुजरा किया है पवार साहब। और राजीव शुक्ला दबी जुबान से सच बोल रहे है। 121 करोड़ हिन्दुस्तानियों से विश्वासघात पर आईसीसी की सफाई में छिपी तिरस्कार की तीर से पूरे देश को आघात लगा है। सवाल ये है कि इस परंपरागत बेशर्मी का प्रतिरूप किसे माना जाए।
आईसीसी ने जो कुछ किया है उसे सुनेंगे तो खून खौल उठेगा। 28 साल के मेहनत को मटियामेट करके रख दिया है।ऐसी घटनाएं परंपराओं का हिस्सा नहीं होती और ना ही योजनाएं बनायी जाती हैं।यू हीं नहीं कोई विश्व विजेता बन जाता है।इसके लिए भरोसे की भट्ठी में तपना पड़ता है। जज्बातों को जरूरत की परखनली में उबलते हुए दिखाना पड़ता है।
भावनाओं के शेयर बाजार में भविष्य को दांव पर लगाना पड़ता है।तमन्नाओं की तीर निशाने पर चलानी पड़ती है।जुनून की हद से गुजरना पड़ता है।क्या कुछ नहीं किया हमारे दिलेर जांबाजों ने।पहले मगरूर कंगारूओ की टीम को पहले चोट किया फिर पाकिस्तान की धज्जियां उड़ायी।तब जाकर वानखेड़ें मैदान में श्रीलंका को रौंदने के लिए भारतीय टीम उतरी थी।
एक-एक गेंद के आगे देश का गुमान चल रहा था। एक एक शॉट पर भुजाएं फड़क रही थी। दिल के डैने बाज की तरह फड़फड़ाने लगे थे।उम्मीदों का उन्माद कहिए या उन्माद की उम्मीद।सांसे भारत में भी थमी थी और सांसे श्रीलंका में भी थमीं थी।एक एक पल चट्टान की तरह खिसक रही थी।वाकई ये मैच जज्बातों का था..ये मैच जीवट का था... मैच हुनर का था.. ये मैच हौंसले का था।
पलकें भी झपकने से इनकार कर दिया।लेकिन जैसे ही धोनी ने धमाके दार छक्का मारा।जज्बात दिल के दरवाजे तोड़ कर बाहर निकल पड़े।माफ किजिएगा हम ज्यादा जज्बाती हो गए...लेकिन क्या करे खुशी को संभाल नहीं पा रहे।मैच खत्म होते ही 11 खलनायक बन चुके थे और 11विजयरथ पर सवार हो चुके थे।कभी ना खत्म होने वाली जश्न से देश सराबोर हो गया।जिस सचिन ने देश को 21 साल कंधे पर उठाया था उसी महानायक को पूरे खिलाड़ियों ने कंधे पर उठा लिया।
इतिहास रोज नहीं बनते।लेकिन ये भी सच है कि इतिहास बदलता है। 2 अप्रैल का दिन दोनों मुल्कों के लिए बाकी 364 दिनों की तरह नहीं रहने वाली।इस दिन हमारे महानायकों ने निर्वासन से आगमन और आगमनसे स्थापन तक का सफर पूरा करके शून्य से संभावनों का नया क्षितिज खोला है।आईसीसी अध्यक्ष माननीय शरद पवार की संदिग्ध मुस्कान ने भी कई राज खोले है।मैदान में मुस्कुरा तो ऐसे रहे थे जैसे ये ही जीतकर आए हों। महंगाई से इतर कोई पूछता नहीं लिहाजा अपनी पूरी ताकत ऐसे लोगों को नीचा दिखाने में झोंक देते है जिसे उठाने में उनका कोई श्रेय ना हो।
कहीं आते जाते भी नहीं....कैसे जाएंगे..इज्जत जो कम हो जाएगी। श्रीलंका से कप आ रहा था लेकिन मुम्बई के कस्टम विभाग के ईमानदार खिलाड़ियों ने कप को पहले ही मार लिया। सचिन,गंभीर,धोनी की सेना देखती रह गयी।45 करोड़ की टैक्स माफी किया था।इस माफी पर क्या मुजरा किया है पवार साहब। और राजीव शुक्ला दबी जुबान से सच बोल रहे है। 121 करोड़ हिन्दुस्तानियों से विश्वासघात पर आईसीसी की सफाई में छिपी तिरस्कार की तीर से पूरे देश को आघात लगा है। सवाल ये है कि इस परंपरागत बेशर्मी का प्रतिरूप किसे माना जाए।
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