तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे भाषा के विशेषज्ञ पढ़कर कहें कि ये कलम का छोटा सिपाही ऐसा है तो भीष्म साहनी, प्रेमचंद, महादेवी वर्मा, जयशंकर प्रसाद, सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला', हरिवंश राय बच्चन, फणीश्वर नाथ रेणु आदि कैसे रहे होंगे... गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.

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बंगाल की ममता सरकार विफल

मुख्यमंत्री का मुस्लिमों के प्रति बढ़ता रुझान


वामपंथी शासन से पश्चिम बंगाल को मुक्त कराने वाली ममता बनर्जी की मां-माटी-मानुष की सरकार का हनीमून शायद खत्म हो चुका है। अब वह माँ-माटी-मुसलमान तक सिमित रह गया है.  वामपंथियों के खिलाफ ममता बनर्जी को राज्य की जनता ने पिछले विधानसभा चुनावों में पलकों पर बैठाया था, और उम्मीद की थी कि सादगी का पर्याय मानी जाने वाली ममता बनर्जी बंगाल में पारदर्शिता के साथ साफ-सुथरा प्रशासन देंगी, लेकिन हाल की कुछ घटनाओं से ममता बनर्जी की सरकार पर तर्जनी उठने लगी हैं।

आम जनता का कहना है की पहले जो काम 100 रूपये देकर हो जाता था अब उसके लिए 2000 देना पड़ता है। वह भी समय से काम नहीं होता। आमरी अस्पताल कांड के बाद वैसे ही ममता दीदी से खासा नाराज़ है। इसके बाद मुस्लिमों के प्रति उनकी रुझान अगले चुनाव में मुश्किल पैदा कर सकती है। ममता दीदी से सिर्फ आम जनता ही परेशान नहीं हैं... उनके पार्टी के नेता (कुछ लोगों को छोड़कर) भी उनसे नाराज़ हैं... दिनेश त्रिवेदी के इस्तीफे मुद्दे पर ही उनसे एक धड़ा काफी नाराज़ था लेकिन जैसे-तैसे मामला शांत हो गया, लेकिन लोकसभा चुनाव से पहले अगर कुछ बदलाव हो जाये, राजनितिक उठापटक हो जाये तो कुछ नया नहीं कहा जायेगा।
केन्द्र में कांग्रेस से बात बात पर भिड़नेवाली ममता सरकार के खिलाफ विपक्षी वाममोर्चा फिर एक बार गोलबन्द हो चुका है। 19 फरवरी को कोलकाता के ब्रिगेड परेड मैदान में लाखों की भीड़ का जुटाव इस बात को और पुष्ट करता है। ब्रिगेड की सभा में माकपा महासचिव प्रकाश करात, सीताराम येचुरी सहित वाममोर्चा के राज्य सचिव विमान बोस, पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य ने तृणमूल-कांग्रेस की साझा सरकार की नाकामियों को बिंदास तरीके से उठाया। समझा जा सकता है कि अप्रैल में होने वाले पंचायत चुनावों के पहले वामपंथियों की 19 फरवरी की कामयाब रैली ममता बनर्जी के लिए चिन्ता का कारण बन चुकी है।

ममता बनर्जी की निजी छवि साफ-सुथरी मानी जा सकती है, लेकिन उनकी सरकार के कामकाज के तरीके पर लोगों को तसल्ली नहीं है। विधाननगर और मालदह के अस्पतालों में बच्चों की मौत पर अस्प्रपताल प्रबन्धन का बचाव ममता बनर्जी की छवि पर एक दाग की तरह है। बताना प्रासंगिक है कि यही ममता बनर्जी वाममोर्चा के शासन के दौरान ऐसी घटनाओं पर आन्दोलन किया करती थीं और सरकारी अस्पतालों में चिकित्सकों की लापरवाही के लिए वामपंथी सरकार को दोषी ठहराया करती थीं, लेकिन जब घटना उनके शासन में हुयी तो वे बचाव में उतरीं और चिकित्सकों की लापरवाही की बात से साफ इनकार कर दिया।

हाल में एक ईसाई महिला ने पार्क स्ट्रीट थाने में बलात्कार की रिपोर्ट दर्ज करायी। इस घटना की सच्चाई को भी मुख्यमंत्री ने संदेह की निगाह से देखा और कहा कि बलात्कार की बात सही नहीं है। कोलकाता के पुलिस आयुक्त रणजीत कुमार पंचनन्दा ने कहा कि बलात्कार का आरोप प्रशासन और सरकार को बदनाम करने के लिए लगाया गया है। मजे की बात है कि मुख्यमंत्री के बयान से खिन्न होकर महिला ने एक बंगला चैनल का सहारा लिया। बंगला चैनल पर उन्होंने साफ कहा कि उनके साथ बलात्कार हुआ है। एक महिला के दर्द को मां-माटी-मानुष की सरकार की मुखिया नहीं समझ पायीं, लेकिन कोलकाता पुलिस की अपराध शाखा की संयुक्त आयुक्त दमयन्ती सेन ने समझा। उन्होंने इस घटना की कड़ी तफ्तीश की और दो ही दिन में तीन अभियुक्तों को गिरफ्तार कर लिया गया। जिस गाड़ी में महिला के साथ बलात्कार हुआ, उसे भी बरामद कर लिया गया।

ममता बनर्जी से कांग्रेस के रिश्ते लगातार तल्ख होते जा रहे हैं। राज्य मंत्रिमंडल में तृणमूल के साथ कांग्रेस के भी सदस्य शामिल हैं, लेकिन पिछले दिनों हुए पनर्गठन में कांग्रेस के मंत्री मनोज भट्टाचार्य के साथ कुछ ऐसा हुआ कि उन्हें मंत्रिमंडल छोड़ने को मजबूर होना पड़ा।

बलात्कार काण्ड में नया मोड़ आ जाने के बाद मुख्यमंत्री की किरकिरी स्वाभाविक थी। कोलकाता के मीडिया ने इस घटना को प्रमुखता से स्थान दिया। नतीजा यह हुआ कि सोमवार 20 फरवरी को मुख्यमंत्री ने राज्य सचिवालय में दमयन्ती सेन को बुलाकर बातचीत की। बाद में सरकार का बचाव करते हुए दमयन्ती सेन को मजबूरन कहना पड़ा कि इस घटना में नया मोड़ उनकी नहीं, बल्कि कोलकाता पुलिस के सम्मिलित कामयाबी है। वरिष्ट पुलिस अधिकारी का 20 फरवरी का प्रेस सम्मेलन भी स्पष्ट करता है कि राज्य सरकार बचाव की मुद्रा में है।

यही नहीं, 9 दिसम्बर को एक निजी अस्पताल में आग की घटना के बाद जिस तरह से गिरफ्तारी में भेदबाव बरता गया, उस पर औद्योगिक जगत में खिन्नता है। इस अस्पताल में आग लगने की घटना के कुछ घण्टों बाद ही अवैध शराब (चुल्लू) पीने से 175 से अधिक लोगों की मौत हुयी थी। मुख्यमंत्री ने अवैध शराब पीकर मरने वाले लोगों के परिजनों को तुरन्त दो-दो लाख के मुआवजे से नवाजा। मुख्यमंत्री के इस निणर्य भी लोग सवाल उटा रहे हैं कि अवैध शराब पीने वालों के लिए उन्होंने राजनैतिक फायदा हासिल करने के लिए मुआवजा दिया।
ममता बनर्जी के सरकार में आने के बाद उम्मीद की जा रही थी कि राज्य में आथिर्क निवेश बढ़ेगा, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है। बंगाल लीड्स के नाम से राज्य सरकार की ओर से निवेशकों को आकर्षित करने के लिए कार्यक्रम किया गया था, लेकिन उसे भी अपेक्षित कामयाबी नहीं मिली। केंद्र से हजारों करोड़ के आर्थिक सहयोग को लगातार नकार रहीं ममता बनर्जी की सरकार को आने वाले दिनों में और विरोध का सामना करना पड़ सकता है।

इन परिस्थितियों में हम कह सकते हैं कि जिन ममता बनर्जी को बंगाल की जनता ने पलकों पर बैठाया था, वे मात्र 9 महीनों के शासन में ही जनता की आंखों की किरकिरी बनने लगी हैं। ममता सरकार के कामकाज के तरीकों से पुलिस और प्रशासन में भी माहौल ठीक नहीं है। कई वरिष्ट आईएएस व आईपीएस अधिकारियों ने राज्य के बाहर डेपुटेशन पर जाने की गुहार केंद्र से लगायी है। ताजा सूचना के अनुसार वरिष्ठ आईपीएस दमयन्ती सेन ने भी हाल ही में ऐसी अर्जी दी है।

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